पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा से जानता हूँ, मगर तुम्हें सिवाय आज के कभी नहीं देखा, वह तुम्हारी सखी क्योंकर हो सकती है । | औरत० | १ झूठी बेवकूफ और उल्लू बल्कि उल्लू का इत्र है ! त् मेरी सखी फो क्या जाने, जब तू मुझे नहीं जानता तो उसे क्यों कर पहिचान सकता है ? उस औरत की बातों ने नानक को आपे से बाहर कर दिया। वह एक दग चिढ़ गया और गुस्से में आकर म्यान से तलवार निकाल कर बोली :| नानक० । कम्त्रख्त औरत, हैं मुझे बेवकूफ बनाती है ! जली कटी पाते कहती है और में श्राखों में धूल हाल चाहती है ! अभः तेरा सर काट के फैंक देना है !! श्रेरित० । ( हँस कर) शशि , क्यों न हो, अ५ जवाँ मर्द जो ठरे ! ( नानक के मुँह के प.स चुटकियाँ चना कर) चैत ऐ३.t:ह, जर देश व दया क्र ।। अन्न नानकप्रसाद ददत न कर सका और यह कह कर कि ले अपने fये की फल ग !' उसने तलवार को बार उसे श्रीरत पर किया । सीरत ने फुन से अपने को बचा लिया और हाथ बढ़ा नानक की फलाई पकड़ जोर से ऐसा झटका दिया कि तलवार उसके हाथ से निकल फर दूर जा गिरी र नानक आश्चर्य में आकर उसको मुह देखने लगा । औरत ने इस कर नानक से कहा, "बस इसी जवाँम पर मेरी सुखी से ब्याह करने का इरादा था ! बस जा और हिजड़ों में मिल कर नाचा कर !!" | इतना वह वह औरत इट गई और पश्चिम की तरफ रवाना हुई। नान% का #प अभी शान्त नहीं हुआ था । उसने अपनी तलवार जो दूर दी हुई थी, उठा र म्यान में रख ली और कुछ सोचता और दांत पीता हुआ उस औरत के पीछे पीछे चला । वह औरत इस बात से भी