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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति किश्ती उसी जगह छोडी और पैदल रोता कलपती किले की तरफ रवाना हुआ क्योंकि यहा जो कुछ हो चुका था उसका हाल राजा बीरेन्द्रसिंह से कहना भी उसने आवश्यक समझा ! चौथा बयान खिदमतगार ने किले में पहुच कर और यह सुन कर कि इस समय दोनों एक ही जगह बैठे हैं कु अर इन्द्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सवत्र जो कु र आनन्दसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेन्द्र सिंह और श्रीरेन्द्रसिंह के पास हाजिर होकर अर्ज किया । इस खबर के सुनते ही उन दोनों के कलेजे में चोट सी लगी । थोड़ी देर तक घबराहट के सब कुछ सोच न सके कि क्या करना चाहिये | रात भी एक पहर से ब्याई जा चुकी यी 1 आखिर जीतसिंह तेजसिंह और देवीसिंह को बुला कर खिदमतगार की जुबानी जो कुछ सुना था कहा और पूछा कि अब क्या करना चाहिये । तेजसिंह० | उस जगल में इतनी अौरत को इकट्ठे हो कर गाना बजाना और इस तरह धोखा देना बेसबब नहीं है ।। | सुरेन्द्र० । जत्र से शिवदत्त के उभरने की खबर सुनी है एक खुटका सा बना रहा है, मैं समझता हूँ यह भी उसी की शैतानी है। | वीरेन्द्र० । दोनों के ऐसे कमजोर तो नहीं हैं कि जिसका जी चाहे पकड़ ले । सुरेन्द्र० । ठीक है, मगर आनन्द का भी वही रह जाना बुरा ही हुआ ) तेज० । बेचारा खिदमतगार जबर्दस्ती साथ हो गया था नहीं तो पता भी न लगता कि दोनें कहा चले गये । खैर उनके बारे में जो कुछ सोचना हैं सोचिये मगर मुझे जल्द इजाजत दीजिए कि हजार सिपाहियों को साथ लेकर वहा जाऊँ और इस वक्त उसे छोटे से जङ्गल को चारो तरफ से घेर लू, फिर जो कुछ होगा देखा जायगा |