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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिस्सा भइते हुऐ चदमे की बार देखने लगा और इसी में उसने घण्टा भर बिता दिया । | घूम फिर कर पुनः बाबाजी के पास गया मगर उन्हें उसी तरह से अन्य किये बैठा पाया लाचार इस उम्मीद में एक किनारे बैठ गया कि आखिर कभी तो अखि खुलेगी । शाम होते होते बगल की कोठी में से जिसका दर्वाजा बन्द था और जिसके अन्दर नानक न जा सका था शंख यजने की चाज ६ । नानक को बड़ा ही ताज्जुब हुआ मगर उस श्रीवाज ने साधू को ध्यान तोड़ दिया, अखेिं खुलते ही नानक पर उनकी नजर पड़ी। साधू० । तू कौन है और यहाँ क्यों कर श्राया ? | नानक० } मैं मुसाफिर हूँ, अाफत का मार भटकता हुआ इधर आ निकला, यह अापके दर्शन हुए, दिल में बहुत कुछ उम्मीदें पैदा हुई। अधूि० | मनुष्य से किसी तरह की उम्मीद न रखनी चाहिये, खैर यह बता तेरा मकान कहाँ है और इस जगत में जहां आकर वापस जाना मुश्किल है कैसे शाया ।। नानक० } मैं काशी का रहने वाला हूँ, कार्यवश एक श्रीरत के साथ जो मेरे मकान के बगल ही में रहा करती थी यहा अाना हुआ, इस जंगल में उस शीररी का साथ छूट गया है। ऐसी ऐसी विचित्र वात देखने में आई' जिनके दर से अभी तक ऐरा कलेजा कर रहा है ।। साधू० । ठीक है, तेरा किस्सा बहुत चहा मालूम होता है जिसके सुनने को अभी मुझे फुरसत नहीं है, जरा ठहर में एक काम से छुट्टी पर ” तो तुझसे आते हैं। घबराइयों नहीं मैं ठीक एक घण्टे में आकर } | इतना कह कर साधू यहाँ से चला गया १ वजे की अ। म और अन्दाज से नानक फ। मालूम हुआ कि साधू उसी कोठी में गया जिसका देना चन्द था और जिसके अन्दर नानक न जा सका था । लाचार नानक दैठा रहा मगर इस बात से #ि सुधूि को आने में घण्टे भर के