पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२३६

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चौथा हिस्सा
 

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४६ चौया हिस्सा कमी नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मगर इस तत्वीर में ऐसी अवस्था क्यों दिखाई गई हैं ? बेशक दूसरी तस्वीर भी कुछ ऐसे ही दंग फी होगी, उसका भी सम्बन्ध कुछ मुझ हीं से हो १ जी घपट्टीती हैं, यहाँ बैठना मुश्किल है !” इतना कह नानक उठ खड़ा हुआ और बार बरा मदे में जा कर टहलने लगा | सुर्य विल्कुल ग्रस्त हो गये, शाम की पहिली अन्धेरी चारों तरफ फैल गई और धीरे धीरे अन्धकार का नमूना दिखाने लगी, इस मकान में भी श्रन्धेरा हो गया श्ररि नानक सोचने लगा कि यहाँ रोशनी की कोई सामान दिखाई नहीं पड़ता, क्या वादाजी अन्धेरै री में रहते हैं। ऐसा सुन्दर और साक मकान मगर बालने के लिए दिया तक नहीं और सिवाय एक मृगछालय के जिस पर ग्राजी वैठते हैं एफ चटाई तक नजर नहीं आती । शायद इसका सन्नच यह हो कि यह फी जमीन बहुत सारे चिकनी और घोई हुई है। | तरह तरह के सोच विचार में नानक को दो घन्टे बीत गये। यका गफ उसे याद शाया कि बाबाजी एक घन्टे का वादा करके गये थे, अब वह अपने ठिकाने आ गये होंगे और वहाँ मुझे न देख न मा क्या सोचते होंगे, विना उनसे मिले और बातचीत कि यहां की कुछ इल माम न होगा, चलो देखें तो सही घे आ गये या नहीं ।। नानक इछ फर उस फैमरे में गया जिसमे बाजी से मुलाकात हुई यी, मगर वहाँ सिवाय अन्धकार के और कुछ दिखाई न पड़ा | थोड़ी देर तक उसने असे फाड़ फाड़ कर अच्छी तरह देखा मगर कुछ मालूम न हुशा, लाचार उसने पुकार---दानाजी !" मगर कुछ पात्र न मिला, उराने र दो दृपः पुका मगर कुछ पल न हुभ्रा । आखिर टटोलता हुआ बावाजी के मृगछाले तक गया मरार से खाली पाक स्लीः श्रया और चादर बरामदे में निकै नीचे चश्मा बह रहा था या कर बैठ रहा ।। घण्टे भर तक चुपचाप सोच विचार में बैठे रहने बाद बाबाजी से