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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति मिलने की उम्मीद में वह फिर उठा और उस कमरे की तरफ चला । अबकी उसने कैमरे का दर्वाजा भीतर से वन्द पाया, ताज्जुच और खौफ से काँपता हुआ फिर लौटा और वरामदे में अपने ठिकाने आकर बैठ रहा। इसी हेर फेर में पहर मर से ज्यादे रात गुजर गई और चारै तरफ से बगल में बोलते हुये दरिन्दे जानवरों की आवाजें आने लगीं जिनके खौफ से वह इस लायक न रहा कि मकान के नीचे उतरे, बल्कि बरामदे में रहन्ध भी उसने नापसन्द किया और बगल वाली कोठरी में घुस फर किवाड़ वन्द करके सो रहा । नानक आज दिन भर भूखा रहा और इस 'समय भी उसे खाने को कुछ न मिला फिर नींद क्यों आने लगी थी। इसके अतिरिक्त उसने दिन भर में ताज्जुब पैदा करने वाली कई तरह की बातें देखी और सुनी य जो अभी तक उसकी आखों के सामने घूम रही थी और नींद की बाधक हो रही थीं 1 आधी रात बीतने पर उसने यौर भी ताज्जुब की बाते देखीं ।। रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी थी जब नानक के कान में दो श्रादमिर्यों के बातचीत की आवाज आई । वह गौर से सुनने लगा, क्योंकि से कुछ बातचीत हो रही थी उसे वह अच्छी तरह सुन और समझ सकता था। नीचे लिखी बातें उसने सुनी-आवाज बाकि होने के सदर से नानक ने समझा कि वे दोनो औरतें हैं : एक० । नानक ने इश्क को एक दिल्लगी समझ लिया । दूर० । अाखिर उसका नतीजा भी भोगेगा। एक: | इस कैम्बत को सूझ क्या जो अपना घर बार छोड़ कर इस तरह एक औरत के पीछे निकल पड़ा। दूसर० । यह तो उसी से पूछना चाहिये । ए० | बाबाजी ने उससे मिलना मुनासिब न सृममा, मालूम नहीं इतर क्या चार है। दुमरा० । जो हो मगर नानक आदमी बहुत ही होशियार और