पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५१
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा चालाक है, ताज्जुब नहीं कि उसने जो कुछ इरादा कर रक्खी हैं उसे पूरा करे । कृ० । यह जरा मुश्किल है, मुझे उम्मीद नहीं कि रानी इसे छोड़ हैं, क्योंकि वह इस खून की प्यासी हो रही है, हाँ अगर यह उस वजड़े पर पहुंच कर वह डा अपने फजे में कर लेगा तो फिर इसका कोई कुछ न कर सकेगा ! दूसरा • } (हँस कर, जिसकी आवाज नानक ने अच्छी तरह सुनी ) यह तो हो ही नहीं सकता ! | एक० । खैर इन बातों से अपने से क्या मतलब ? हम लौडियों को इतनी अक्ल काँ कि इन बातों पर बहस करें। दूसर० 1 क्या लडी होने से अक्ल में बट्टा लग जाता है ? एक • । नहीं, मगर असली असली दाती की लहियों को खवर ही कुछ होती है ।। दूत । मुझे तो खबर है। एक । सो क्या ।। दूसरा • ! यी कि दृम भर में नानक गिरफ्तार कर लिया जायेगा, से अब बातचीत करना मुनासित्र नहीं, हरिहर शाता ही होगा । | इसके बाद पिर नानक ने कुछ न सुना मगर इन बातों ने उसे परेशान फर दिया, डर के मारे कॉपता हुआ उठ बैठा और चुपचाप वहाँ से भाग चलने पर मुस्तैद हुशा । धीरे से किवाड़े खोल कर कोठड़ी के बाहर श्रावा, | चारो तरफ सन्नाटा था। इस मकान से बाहर निकल कर जाल में भालू चीते या शेर के मिलने का डर जरूर था मगर इस मकान में रह कर उसने अपने बचाव की घोः सूरत न समझ क्योंकि उन दोनों औरतों की बात ने उसे हर तरह से निराश कर दिया था । हाँ बजड़े पर पहुँच कर उस द्रव्ये पर जा कर लेने के पाल ने उसे बेस कर दिया और जहाँ तक जल्द