पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२४

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा सुरेन्द्रः । ( जीतसिंह से ) क्या राय है? |जत० । तेज टीक कहता है, इसे भी जाना चाहिए ।। | हुक्म पाने ही तेजसिंह दीवानखाने के ऊपर एक बुर्ज पर चढ़ गए जहाँ ग्र; मा नक्कारा और उसके पास ही एक भारी चोव :मलिए रक्खा हा था कि वक्त चैवक्त जत्र कोई जरूरत या पई ग्रार फौज को तुरंत तैयार कराना हो तो इस नकारे पर चोब मारी जाय । इसकी अावाज भी निराले ही ढंग की थी जो किमी नारे की आवाज मे मिलती न थी शौर म बजाने के लिए तेजसिंह ने कई इशारे भी मुर्रर किए हुए थे । नेत्रवि ने चोर उठा क्रेर जोर से एक दफे नक्का पर भारी जिसको प्रीम्राज तमाम शहर में बल्कि दूर दूर तक गूंज गई । चाहें इसका मवव तिमी २ वाले की ममझ में न आया हो मगर सेनापति ममझ गया कि मी वक्तेः इजार पीजी सिपाहियों की जरूरत है जिरका इन्तजाम उसने बदृत जल्द किया । तेजसि” अपने सामान से तैयार हो किले के बाहर निकले शोर हजार फाजी सिपारी तथा बहुत से मशालचियो को साथ ले उस छोटे से जगल की तरफ रवाना होकर बहुत जल्दी ही वहॉ जा पहुचे ।। | थोडी थोडी दृर पर पहरा मुकर्रर कर के चारो तरफ से उस जंगल को घेर लिया । इन्द्रजीतसिंह तो गायत्र हो ही चुके थे, आनन्दसिंह से भी मिलने को बहुत तकत्रि की गई मगर उनका भी पता न लेगा । तरत में रात निताई सवेरा होते ही तेजसि न हेक्म दिया कि एक तरफ से इसे अगल को तेजी के साथ काटना शुरू करो जिधर्म दिन भर में तमाम जगल स्पः हो जाय । उसी समय महाराजा सुरेन्द्रसिह और जीतसिह भी व आ पहुँचे । जगल का काटना इन्होने भी पसन्द किया और बोले कि बहुत अच्छा होगा अगर हम लोग इस जगल से एक दम ही निश्चित हो जॉय ।। | इस छोटे से जगल को काटते देर ही कितनी लगनी थी, तिस पर महा