पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५३
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा मोमबत्तियाँ जल रही थीं और वत से आदमी भी घूमते फिरते दिखाई दे रहे थे । बाग के बीचोबीच में एक आलीशान बंगला था, नानक वहां पहुँचाया गया और उसने शासमान की तरफ देख कर मालम किया कि अब रात बहुत थोड़ी रह गई है। । यद्यपि नानक बहुत होशियार चालाक बादुर और दीठ था मगर इस समय बहुत ही घबड़ाया हुआ था। उसके ज्यादै घड़ाने का सत्र यह था कि उसके इरचे छीन लिये गये थे और वह इस लायक न रह गया था कि दुश्मन के हमला करने पर उनका मुकाला करे । क्रिसी | तरह अपने को बचा सके। हाँ हाथ पैर खुले रहने के सत्र नानक इस खदान से भी वेर्गिझ न था कि अगर किसी तरह भागने का मौका मिले तो भाग जाय । बाहर ही से मालूम होता था कि इस मकान में रोशनी बवृदी हो रही है। बाहर के सहन में कई दीवारगीरें जल रही थीं और चौबदार |शय में सोने का श्रासी लिए नौकरी अदा कर रहे थे। उन्हीं के पास नानक खड़ी कर दिया गया और वे आदमी जो उसे गिरफ्तार कर लाये | थे और गिनती में आठ धे मकान के अन्दर चले गये, मगर चौरदारों फो यह फुहले गये कि इस अदमी से होशियार रहना, हम सरकार में सबर करने जाते हैं । ननिक को आधे घण्टे तक वहाँ खड़ा रहना पड़ा। जब मैं लोग जो उसे गिरफ्तार कर लाये थे और लवर करने के लिए अन्दर गये थे लौटे तो नानक की तरफ देख कर बोले, “इत्तिला र दी गई, अब तू अन्दर चला झा ।' ननिक० } मुझे क्या मालूम है कि फा जाना होगा और रास्ता न है ? ए० { अ६ मकान तुझे श्राप ही रास्ता बताचेगा, पूछने की जरूरत नीं ।