पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२४४

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चौथा हिस्सा
 

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६५ चौथा हिस्सा रामभोली० । जो हुक्म होगा कसंहीगी ।। महारानी० ! तुम दोनों जाओ और जो कुछ करते बने करो । रामभली । काम बाँट दीजिये ।। महारान० 1 ( धनपति की तरफ देख के } नानक के कब्जे से किताब उकाल लेना तुम्हारा काम, ( रामभोली की तरफ देख के ) किशोरी को रफ्तार कर लाना तुम्हारा काम । बाबाजी० । मगर दो बातों का ध्यान रखना नहीं तो जीती न बचौगी । दोनों ० है वह क्या ? बाबाजी० | एक तो हैं अर इन्द्रनीतसिंह या ग्रानन्दसिह को हाय में लगाना, दुसरे ऐसा करना जिसमें नानक को तुम दोनों का पता न लगे, नहीं वह विना जान लिए कभी न छोड़ेगा और तुम लोगों के किए कुछ न होगा । ( रामभोली की तरफ देख के ) यह न समझना कि प्रब वह तुम्रा मुलाजा करेगा; अब उसे असल हाल मालूम हो गया, हग लोगों को जड बुनियाद से खोद कर फेंक देने का उद्योग वह হয় না। | महारानी ० । ठीक है इसमें कोई शक नहीं, मगर वे दोनों चालाक हैं, अपने दो बचायेंगी । ( दोनों की तरफ देख कर ) खैर तुम लोग जा, देखो ईश्वर क्या करता है। खून होशियार और अपने को इवाए ना ! दौनी ! कोई ई नहीं । नौवां वयान ६ इम ब्लासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में वेसे पट्टी | हुई चैारी किशोरी और ऊँग्रेर अानन्दर्भिह इत्याटि फी सुध लेते हैं। जिर अमर कुञ्जर आनन्दसिंह भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के