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चन्द्रकान्ता सन्तति अन्दर गिरफ्तार हो गये और राजा दिग्विजयसिह के सामने लाये गये तो राजा के ग्रादमियों ने उन तीनों का परिचय दिया जिसे सुन राजा हैरान रह गया और सोचने लगा कि येतीन या क्र्योकर आ पहुंचे । किशोरी भी उसी जगह खदी थी। जब उसने सुना कि से लोग फलाने है तो वह घवेडा राई, उसे विश्वास हो गया कि अब इनकी जान नहीं बचती । इस समय वह मन ही मन में ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि जिस तरह हो सके इनकी जान बचा, इसके बदले में मेरी जान जाय तो कोई हर्ज नही पुरन्तु में अपनी आखो से इन्हें मरते नहीं देखा चाहती; इसमें कोई शक नही कि ये मुझी को छुड़ाने आये थे नही तो इन्हें क्या मतलब था कि इतना कष्ट उठाते । । | जितने श्रादमी तहखाने के अन्दर मौजूद थे सभी जानते थे कि इस समय तहखाने के अन्दर कु अर अनिन्दसिंह का मददगार कोई भी नहीं है परन्तु हमारे पाठक महाशय जानते हैं कि पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी जो इस समय दारोगा वने यहा मौजूद है के अरे नन्दसिंह की मदद जरूर करेंगे, मगर एक आदमी के किये होता ही क्या है ! तो भी ज्योतिषी जी ने हिम्मत न हारी और वह राजा से बातचीत करने लगे ! ज्योति झी जानने थे कि मैं अकेले के किये ऐसे मौके पर कुछ नहीं हो सुकता और वहा की किताब पढ़ने से उन्हें यह भी मालूम हो गया था कि इस तरसाने के फायदे के मुताबिक ये जरुर मारे जायरी, फिर भी ज्योतिर्यजी को इनके बचने की उम्मीद कुछ कुछ जरूर थी क्योंकि पदित वनाथ कह गये थे कि आज इस तहखाने में कुँअर यानन्दसिंह वेंगे ग्रौर उनके धोदी ही देर बाद कुछ आदमियों को लेकर हम भी , चेंगे | अब व्यतिवीजी सिवाय इसके और कुछ नहीं कर सकते थे कि राजा की बातों में लगा कर देर करें जिसमें पण्डित बद्रीनाथ वगैरह श्रा जाय र पिर उन्होंने ऐसा ही किया ! प्योतिपीजी अर्थात् दारोगा साइप राजा साहब के सामने गये और बोले :--