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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति सामने बलि पड़ गये लेकिन ऐसी नौवत न ई थी । श्राज राजो को विश्वास हो गया कि इस मूरत में कोई करमात जरूर है तभी तो बड़े लोगों ने बलि का प्रबन्ध किया है । यद्यपि राजा ऐसी बातों पर विश्वास कम रखता था परन्तु आज उसे हर ने दबा लिया, उसने सोच विचार में ज्यादे समय नष्ट न किया और उसी ताली से बारह नम्बर वाली कोठडी खोल कर किशोरी को उसके अन्दर बन्द कर दिया । राजा दिग्विजयसिंह ने अभी इस काम से छुट्टी न पाई थी कि बहुत से श्रादमियों को साथ लेकर पण्डित बद्रीनाथ उस तहखाने में या पहुंचे। कुँअर अानन्दसिंह और तारासिंह को बेबस पाकर झपट पड़े और बहुत चल्द उनके हाथ पैर खोल दिये । महाराज के आदमियों ने इनका मुकाचला किया, पण्डित बद्रीनाथ के साथ जो आदमी आये थे वे लोग मी भिड गये । जव आनन्दसिंह भैरोसिंह गौर तारासिंह छटे तो लडाई गहरी हो गई, इन लोगो के सामने ठहरने वाला कौन था १ केवल चार ऐयार | ही इतने लोगों के लिये काफी थे। कई मारे गये, कई जख्मी हो कर गिर पड़े, राज दिग्विजयसिंह गिरफ्तार कर लिया गया, वीरेन्द्रसिंह की तरफ को कोई न मर । इन सब कामों से छुट्टी पाने के बाद किशोरी की खोज की गई है। | इस तहसाने में जो कुछ आश्चर्य की बातें हुई थी सभी ने देखी सुनी थी । लाली र ज्योतिषीजी ने सुत्र द्दल ग्रानन्दसिंह और ऐयर लोगों को बताया और यह भी कहा कि किशोरी बारह नम्वर की कोठडी में बन्द कर दी गई है। परिदते बद्रीनाथ ने दिग्विजयसिंह की कमर से ताली निकाल ली और बार नम्वर ॐ केटी जाली मगर किशोरी को उसने न पाया । चिराग ते वर ग्रच्छी तरः इँदा परन्तु किशोरी ने दिखाई पड़, न मालूम , जमीन में ममा गई या टीवार र गई । इस बात का आश्चर्य | सभों ॐ श्री कि कोटी में फिशोरी कहा गायब हो गई, हा एक