पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२५

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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२६ चन्द्रकान्ता सन्तति राज की मुस्तैदी के सबब यहाँ कोई भी ऐसा नजर नहीं आता था जो पेड़ की कटाई में न लगा हो । दोपहर होते होते जगल कट के साफ हो गया मगर किसी का कुछ पता न लगा यहाँ तक कि इन्द्रजीतसिंह को तरह आनन्दसिंह के मी गायब हो जाने का निश्चय करना पडा हाँ इस जगल के अन्त में एक कमसिन नौजवान हसीन और बेशकीमती गहने कपड़े से सजी हुई औरत की लाश जरूर पाई गई जिसके सिर का पता न था ।। | यह लाश महाराज सुरेन्द्रसिंह के सामने लाई गई। अब सभी की परेशानी और भी बढ़ गई और तरह तरह के ख्याल पैदा होने लगे । लाचार उस लाश को साथ ले शहर की तरफ लौटे। जीतसिंह ने तेजसिंह से कहा, हम लोग जाते हैं, तारासिंह को भेज के सब ऐयारी को जो शिवदत्त की फिक्र में गए हुए हैं बुलवा कर इन्द्रजीतसिंह और अनिन्दसिंह की तलाश में भेजेंगे, मगर तुम इसी वक्त उनकी खोज में जहाँ तुम्हारा दिल गवाही दे जायो ! तेजसिंह अपने सामान से तैयार ही थे, उसी वक्त सलाम कर एक तरफ को रवाना हो गए, और महाराज रूमाल से अखिों को पोंछते हुए चुनार कीतरफ विदा हुए । उदास और पोतों की जुदाई से दुखी महाराज सुरेन्द्रसिंह घर पहुँचे । दोनों लड़कों के गायब होने का हाल चन्द्रकान्ता ने भी सुना वह बेचारी दुनिया के दु:ख सुख को अच्छी तरह समझ चुकी थी इसलिए कलेजा मसोस कर रह गई, जादिर में रोकना चिल्लाना उसने पसन्द न किया, मगर ऐसा करने से उसके नाजुक दिल पर और मी सदमा पहुची, घडी भर में ही उसकी सूरत बदल गई । चपला शोर चम्पा को चन्द्रकान्ता से कितनो मुहब्बत थी इसको आप लोग बूब जानते है लिखने की कोई जरूरत नहीं, दोनों लटक के गायब होने का गम इन दोनों को चन्द्रकान्ता से ज्यादे हुया श्रीर दोनों ने निश्चय कर लिया कि मौका पा कर इन्द्रजीतसिंह अौर श्रानन्दसिंह का पता लगाने की कोशिश करेंगी ।।