पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
७८
 

________________

चंद्रकान्ता सुन्तत दिग्वि० १ ईश्वर करे जल्द ऐसा मौका आवे, अब तो आपको बहुत चल्द रोहतासगढ चलना चाहिये ।। वीरेन्द्र० 1 ( तेजसिंह को तरफ देख कर ) इन्द्रजीतसिंह के बारे में क्या बन्दोवस्त हो रहा है ? तेज { में बेफिक्र नहीं हैं, जासूस लोग चारो तरफ भेजे गये हैं ? इस समय तक रोहतासगढ की कार्रवाई में फंसा हुआ था, अब स्वयं उनकी खोज में जाऊगा, कुछ कुछ पता लग भी गया है ।। बीरेन्द्र ० | हा ! क्या पता लग्या है ? तेज० । इसका हाल कल कहूगा, आज मर और सत्र कीजिये । राजा वीरेन्द्रसिंह अपने दोनों लड़कों को बहुत चाहते थे, इन्द्रजीतसिंह के गायब होने का रङ्ग उन्हें बहुत था, मगर वह अपने चित्त के भाव को भी खूब ही छिपाते थे और समय का ध्यान उन्हें बहुत रहता या } तेजसिंह का मरोसा उन्हें बहुत था और उन्हें मानते भी बहुत थे, जिस काम में उन्हें तेजसिंह रोकते थे उसका नाम फिर वह जवान पर तब तक न लाते थे जब तक तेजसिंह स्वयम् उसका जिक्र न छेडते, यही सबवे था कि इस समय में तेजसिंह के सामने इन्द्रजीतसिंह के बारे में और कुछ न बोले । दूसरे दिन महाराज दिग्विजयसिंह सेना सहित तेजसिंह को रोहतासगढ़ किले में ले गये 1 कु अरे नन्दसिंह के नाम का डंका बजाया गया । य? मौका ऐसा था कि खुशी के जलसे होते मगर कु शेर इन्द्रजीतमिहू के थाल से किसी तरहूँ की खुशी न की गई। रासा दिग्विजयमिह के वर्तथि न्ग्री ठातिरदारी से राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके साथ लोग वन प्रसन्न हुए। दूसरे दिन दीवानखाने में यो अदिमिया की कमेटी इसलिए की गई कि अब क्या करना चाहिये । इन दमेटी में केवल नीचे लिये बहादुर और ऐयार लोग इक थेराजा दीपेन्द्रविंह, कुशुर ग्रानन्दसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, पति वद्रीनाथ,