पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२६

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा | महाराज सुरेन्द्रसिंह के अाने की खबर पाकर वीरेन्द्रसिंह मिलने के लिये उनके पास गए । देवीसिंह भी वहाँ मौजूद थे । वीरेन्द्रसिंह के सामने ही महाराज ने सन हाल देवीसिंह से कह कर पूछा कि अब क्या करना देवी० } मै पहिने उस लाश को देखा चाहता हूँ जो उस जगल में पाई गई थी । । सुरेन्द्र० 1 हाँ तुम उसे जरूर देखो । जीत० } ( चोचदार से ) उस लाश को जो जगल में पाई गई थी इसी जगह लाने के लिये कहो । “बहुत अच्छा" कह कर चवदार बाहर चला गया मगर थोडी हीं देर में वापस आकर बोला, “महाराज के साथ आते आते न मालूम वह लाश' कहा गुम हो गई ! कई आदमी उसकी खोज में परेशान है मगर | पता नहीं लगता !!" | वीरेन्द्र० 1 अब फिर हम लोगों को होशियारी से रहने का जमाना श्रा गया । जय हजारों अदिमियो के बीच से लाश गुम हो गई तो मालूम होता है, अभी बहुत कुछ उपद्रव होने वाला है । | जीत० । मने तो समझा था कि अब जो कुछ थोड़ी सी उम्र रह गई। है श्रीराम से कटेगी, मगर नहीं, ऐसी उम्मीद किसी को कुछ भी न रखनी चाहिए। | सुरेन्द्र० 1 खेर जो होगा देखा जायगा, इस समय क्या करना मुनासिन। उमे सोच । जति० 1 मेरा विचार था कि तारासिंह को बद्रीनाथ वगैरह के पास भेजते जिसमें वे लोग भैरोसिंह को छुड़ा कर ग्रौंर किसी कार्रवाई में न फंसे और मीधे यहाँ चले श्रावे, मगर अब ऐसा करने की भी जी नहीं चाहतः । आज भर अप और सन्न करे, अच्छी तरह सोच विचार कर कल में अपनी राय दूगी ।