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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति तेज० । दो तरह के रञ्च और अफसोस का मतलब मैरी समझ में नहीं आया, कृपा कर साफ साफ कहिये ।। दिग्वि० ) पहले उसके भाग जाने का अफसोस क्रोध के साथ या मगर आज इस बात का अफसोस है कि जिन बात को सोच कर वह भागा था वे बहुत ठीक थी, उसकी तरफ से मेरा रज्ज होना अनुचित था, यदि इस समय वह होती तो बडी खुशी से आपके काम में मदद करता । तेज० । उससे अपि क्यों रञ्ज हुए थे और वह क्यों भाग गया था ? दिग्वि० । इसका सबब यह था कि जब मैंने किशोरी को अपने कब्जे में कर लिया तो उसने मुझे बहुत कुछ समझाया और कहा कि श्राप ऐसा काम न कीजिए बल्कि किशोरी को राजा वीरेन्द्र सिंह के यहा भेजे दीजिये । यह बात मैंने मन्जूर न की बल्कि उससे रश्न होकर मैंने इरादा कर लिया कि उसे कैद कर दू’ | असल बात यह है कि मुझमें ग्रौर रणधीरसिंह में दोस्ती थी, शेरिसंह मेरे यहा थहा रहता था और उसका छोय भाई गदाधरसिंह जिसकी लडकी कमला है, आप उसे जानते होंगे १ तेज ०। हा हा, हम सब कोई उसे अच्छी तरह जानते हैं। | दिग्वि० । खैर, तो गदाधरसिंह रणधीरसिंह के यहा रहता था । गदाधरसिंह को मेरे बहुत दिन हो गये, इसी बीच में मुझसे और रणधीरसिंह से भी कुछ बिगड़ गई, इधर जब मैने रणधीरसिंह की नतिनी किशोरी को अपने लड़के के साथ व्याहने का बन्दोवस्त जिया तो शेरसिंह को बहुत बुरा मालूम हुआई । मेरी तबीयत भी शेरसिंह से फिर राई । मने सोचा कि शेरसिंह की भतीजी कमला हमारे यहा से किशोरी को निकाल ले जाने की जरूर उद्योग करेगी श्रीर इस काम में अपने चाचा शेरसिंह से मदद लेगी । यह बात मेरे दिल में बैठ गई और मैने शेरसिंह को कैद करने का विचार क्विा, उसे मेरा इरादा मालूम हो गया और वह चुपचाप न मान्दूम का भाग गया ।।