पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२६२

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा दिस? में इस बात का विचार ने लगा कि अब क्या करना चाहिए । घण्टे भर में यह निश्चय हुआ कि लाली से कुछ विशेष पूछने की जरुरत नहीं हैं क्यों%ि वह अपना हाज' टक टीक कभी न कहेंगी, हा उसे हिफाजत में रखना चाहिए और तहखाने को अच्छी तरह देखना और वहां का दाल मालूम करना चाहिए | यारहवां दयाल अव त कुन्दन का हाल जरूर ही लिखना पडा । पाक महाशर उनका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे । हुमने कु दन को रोहतीसगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहुत थी । कुन्दन इस फिक्र में लगी रहती थी कि किशोरी किसी तरह लाल के कब्जे में न पड़ जाय । जिस रमय किशोरी को ले कर सीध की राह लेनी उस घर में उन्नर गई जिसमें से तहखाने का रास्ता था और यह हाल बुन्दन के गान्। इा तो वह बहुत घटाई ! मल भर में इस बात का सुन्न स चा दिया। र इस सोच में पड़ी कि अब क्या करना चाहिए। हम पनि किन ये हैं कि किशोरी र लाली के जाने के बाद ‘धुरो पऊट' की अधाउ लगते हुए कई आदमी सीध की राहू उसी सकान में उतर गये ।। लाली और किशोरी गई थी । | उन्हीं लोगों में मिल कर कुन्दने भी एक छोटी सी गठी १५ ॥ राय बाधे उग मकान के अन्दर चली गई और यह गल भवट i} गुलशोर में किसी को मालूम न हुआ | उस मकान के अन्दर || {" ! अन्धेरा था । लाली में दूसरी कोठी में जाकर दवा बन्द ः {जय! इसे लिये लाचार हो कर पीछा करने वाले को लीटना १ • • गई ने इस बात की इतना महाराज से की, मगर - { २१३,{• से न लौटी बल्कि किसी कोने में छिप रहीं ।।