पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
८२
 

________________

चन्द्रकान्ता सन्तति ८२ तेज ० | शेरसिंह ने मुझसे स्वयम् मिल कर सब हाल का, असल तो यह है कि हम लोगो पर भी शेरसिंह ने भारी अहसान किया है । वीरेन्द्र० | वह घ्या १ तेज० [ अर इन्द्रजीतसिंह का पता लगाया है और अपने कई शादमी उनकी हिफाजत के लिए तैनात कर चुके हैं। इस बात का भी निश्चय दिला दिया है कि कुअर इन्द्रजीतसिंह को किसी तरह की तक लीफ न होने पावेगी ।। | वीरेन्द्र० । ( खुश हो कर श्रौर शेरसिंह की तरफ देख कर ) है ! कहाँ पता लगा और वह किस हालत में है ? शेर० । यह सब हाल जो कुछ मुझे मालूम था मै दीवान साहने ( तेजसिंह ) से कह चुका हूं वह आपसे कह देंगे, आप उसके जानने की जल्दी न करें । मैं इस समय यहाँ जिस काम के लिए श्राया था मेरा वह काम हो चुका, अत्र में यहा ठहरना मुनासिब नहीं समझता । श्राप लोग -पने मतलब की बातचीत करें और मुझे रुखसत करें क्योंकि मदद के लिए मैं बहुत जल्द कुअर इन्द्रजीतसिह के पास पहुंचा चाहता हूँ । हा यदि श्राप कृपा कर के अपना एक ऐयार मेरे साथ कर दें तो उत्तम हो और काम भी शीघ्र हो जाय ।। | वीरेन्द्र० ।( खुश हो कर ) अच्छी बात है, श्राप जाइये और मेरे सिस ऐयार को चाहिये लेते जाइये ।। २० | अगर आप मेरी मर्जी पर छोडते है तो में देवीसिंहजी को अपने साथ के लिए मागता हु । तेज० १ ४ा शाप वुशी से उन्हें ले जायं । ( देवीसिंह की तरफ देख र) शाप तैयारी कोविए । | टेव० । मैं हरदम तैयार ही रहता हूँ ।( शेरसिंह से ) चलिए अब इन लोगों का पीछा छौदिए । टेवीसिंह को साथ ले कर शेरसिंह रवाना हुए और इधर इन लोगों