पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९
पहिला हिस्सा
 

________________

पहिला हिस्सा राम० । न मालूम क्यों बुलाया है मगर ताकीद की है कि जल्द बुला लाश्रो ! वृहा० । अभी घण्टे भर भी नहीं हुए जब किसी ने श्री के कहा था | कि महाराज खुद आने वाले हैं, क्या वह वात झूठ थी १ । राम० | हा महाराज ग्राने वाले थे मगर अब न अावेंगे । बूढ० अच्छा शाप दोग आदमी इसी उग्र वैट थ्रार कैदी की | हिफाजन करे में जाता हू ।। राम | बहुत अच्छा । रामनारायण श्रौर चुन्नीलाल को कड़ी के अन्दर बैठा कर बुढा दारोगा बाह्र श्राय और चालाकी से फूट इस कोठडी की दवा बन्द कर के बाहर से बोला, “इन्दगी । में दोनों को पहिचान राधा किं ऐयार हौ ! कहिये अब हमारे द मैं आप लोग फंसे या नहीं ? मने भी क्या मजे में पता लगा लिया ! पूछा कि अभी तो मालूम हुआ था कि महाराज खुद आने वाले हैं, अपने भी झट आबूल कर लिया अॅार कहा कि 'इवा आने वाले थे मगर अर्य न झायेगे। यह न समझे कि में धोखा देता है । इसी अक्ल पर ऐयारी करते ही १ वैर अप लोग भी अचे इसी कैदखाने की हवा खाइये और जान लीजिये कि मैं बाकरअली ऐयार झाप लोगो को मजा चखाने के लिए इस जगह बैठाया गया हू ।' चुढे की बातचीत मुन रामनारायण और बुन्नालाल चुप हो गये बल्कि शम कर सिर नीचा कर लिया 1 बूढा दारोगा वहा से रवाना हुआ और शिवदत्त के पास पहुंच इन दोन ऐयारों के रिप्तार करने का हाल का । महाराज ने खुश होकर चाकरअली को इनाम दिया और खुशी खुशी खुद रामनारायण और चुन्नीलाल को देखने आये । । | बद्रीनाथ पन्नालाल र ज्योतिदीजो को भी मालूम हो गया कि हमारे साथियों में से दो ऐयार पकड़े गये । अब तो एक की जगह तीन श्रादभिया के छुने की फिक्र करनी पड़ी।