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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति कुछ रात गये ये तीनों ऐयार घूम फिर कर शहर के बाहर की तरफ जा रहे थे कि पीछे से एक आदमी काले कपड़े से अपना तमाम वदन छिपाये लपकता हुआ उनके पास आया और लपेटा हुशा छोटा सा एक कागज उनके सामने फेंक और अपने साथ ग्राने के लिये हाथ से इशारा कर के तेजी से आगे बढ़ा ।। बड़ीनाथ ने उम पुर्जे को उठा कर सड़क के किनारे एक वनिये की दुकान पर जलते हुए चिराग की रोशनी में पढ़ा, सिर्फ इतना ही लिखा था—“भैरोसिंह ।' बद्रीनाथ समझ गए कि भैरोसिंह किसी तरकीब से निकल भाग है और यही जा रहा है। बद्रीनाथ ने भैरोसिंह के हाथ की लिखी भी पहिचाना ।। भैरोंसिह पुर्जा फेंक कर इन तीनों को हाथ के इशारे से बुला गया श्री ग्रौर दम बारह कदम आगे बढ़ अब इन लोगों के आने की राह देख रहा था । | बद्रीनाथ वगैरपुश हो कर आगे बढ़े और उसे जगह पहुचे जहा भैरोसिंहू काले कपड़े से बटन को छिपाये सड़क के किनारे झाड देख कर पड़ा था । बातचीत करने का मौका न था, आगे आगे भैरोसिंह और पीछे पीछे बद्रीनाथ पन्नालाल और ज्योतिपीजी तेजी से कदम बढ़ाते शहर के वाइर हो गये ।। रात अन्धेरी थी । मैदान में जाकर भैरोसिंह ने काला कपडा उतार दिया | इन तीनों ने चन्द्रमा की गेशनी में भैरोसिंह को पहिचाना, खुश होकर बारी बारी तीनों ने उसे गले लगाया और तब एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर बातचीत करने लगे । | बद्री० । नैमिर, इस वक्त तुम्हें देय कर तबीयत बहुत ही खुश हुई । ६० { में तो किसी तरह छूट श्राया मगर रामनारायण श्रीर गुनीलाल दब जा फँसे है । पति० } उन दोनों ने भी क्या हो घोसा साया है ।