पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/३०

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा भैरो० | मैं उनके छुडाने की भी फिक्र कर रहा हूँ। पन्ना० | वह क्यों ? भैरो० । सो सब कहने सुनने का मौका तो रात भर है मगर इस | समय मुझे भूख बटर जोर से लगी है कुछ हो तो खिलायो । | बद्री० } दो चार पेड़े है, जी चाहे तो खा लो ।। भै) ० । इन दो चार पेडों से क्या होगा ? खैर कम से कम पानी का तो बन्दोस्त होना चाहिये ।। वर्द्रः । पिर क्या करना चाहिये १ भैरो० 1 ( हाथ से इशारा कर के } वह देखो शहर के किनारे जो चिराग जल रहा है अभी देखते आये है कि वह हलवाई की दुकान है। और वह ताजी पूरियाँ बना रहा है, बल्कि पानी भी उसः हलवाई से मिल जायेगा | पन्ना० ! अच्छा में जाता है । भैरो० | हम लोग भी साथ ही चलते हैं, सभों को इकट्ठे ही रहना ठीक है, कहीं ऐसा न हो कि आप फेस जाये और हम लोग राह ही देखते रहे । | पन्ना० । फेसना क्या खिलवाड़ हो गया ? | भैरो० । खैर हर्ज ही क्या है अगर हमलोग साथ ही चले चले ? तीन आदमी किनारे खड़े हो जायगे एक अादमी आगे बढ़ कर सौदा ले लेगा ।। बढी • } हाँ हाँ यही ठीक होगा, चलो हम लोग एक साथ चलें । चारो ऐयार एक साथ वहाँ से रवाने हुए और उस इलवाई के पास पहुंचे जिसकी अकेली दूकान शहर के किनारे पर थे 1 बद्रीनाथ ज्योति जी और भैरोसिंहू कुछ दूर इधर ही खड़े रहे और पन्नालाल सौदा खरीदने के लिए दुकान पर गये ! जाने के पहले ही भैरोसिंह ने कहा, मिट्टी के बर्तन में पानी भी देने का एकरार हलवाई से पहिले कर लेना नहीं तो पीछे हुज्जत करेगा।