पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/३१

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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३२ चन्द्रकान्ता सन्तति पन्नालाल हलवाई की दुकान पर गये और दो सेर पूरी सेर भर मिठाई मॉगी ! हलवाई ने खुद पूछा कि ‘पानी भी चाहिये या नहीं ? पन्ना० ! हा हा पानी जरूर देना होगा । इल० । कोई वर्तन है ? पन्ना० | वर्तन तो है मगर छोटा है, तुम्ही किसी मिट्टी के ठिलिये में जल दे दो } हले० । एक घटा जल के लिये अाठ अाने और देने पड़े गे ) पन्ना० । इतना अधेर ! खैर हम देगे । पूरी मिटाई और एक घडा जल लेकर चारो ऐयार वहा से चले मगर यह खबर किसी को भी न थी कि कुछ दूर पीछे दो आदमी साथ लिए छिपता हुआ हलवाई भी ग्रा रहा है । मैदान में एक बड़े पत्थर की चट्टान पर वैट चारो ने भोजन किया जल पिया और हाथ में है वो निश्चिन्त हो धीरे धीरे अ पुस में बातचीत करने लगे । आधा घण्टा भी न बीता होगा कि चारों बेहोश होकर चट्टान पर लेट गए और दोनों श्रादमियों का साथ लिए हलवाई दनकी खोपटी पर था मौजूद हुआ। | हुलचाई के साथ आए हुए दो श्रादमियों ने बद्रीनाथ ज्योतिपीजी शौर पन्नालाल की मुश्के कस टाली शोर कुछ सुधा भैरामिह को हाश में लाकर बोले, “वाह जी अजायबसिंह, श्रापकी चालाकी तो खूत्र काम कृर गर्ट 1 अत्र तो शिवदत्तगढ़ में आये हुए पाचो नालायक हमारे हाथ फस । महाराज से सच से ज्याद इनाम पान का काम तो श्राप ही न किय!" छठवां वयान बरन मी तली उठा कर महाराज मुरेन्द्रसिंह और बीरेन्द्रसिंह तथा इन् । बदलत चन्द्रकान्ता चपला चम्पा तेजसिंह ौर देवीसिह वगैरह ३ थे; दिन र मुगु र मगर अ५ व जमाना न रह 1 सच है सुख दु प र पहरा अविर बदलता रहता है। खुशी के दिन बात