पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/३४

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पहिला हिस्सा
 

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३५, पहिला हिस्सा झ ! के आगे आग जल रही है। नन्दसिह उभी तरफ चले और थोडी ही देर में कुटी के पास पहुँच कर देखा कि पते की बनाई हुई हरी झोपी के आगे आठ से आदमी जर्मन पर फर्श त्रिछाये बेटे है जो कि दाढी र पहिरावे से साफ मुसलमान मालूम पड़ते हैं 1 बीच में दो मोमी शमदिन जल रहे हैं । एक आदमी फारसी के शेर पढ़ पढ़ कर मुना रहा है और बाकी सब ‘वाह वाह की धुन ला रहे है । एक तरफ अग जल रही शौर दो तीन आदमी कुछ खाने की चीजें पका रहे हैं । आनन्दसिंह फर्श के पास जाकर खड़े हो गए। अानन्दसिंह को देखते ही सब के सब उठ खड़े हुए और बड़ी इज्जत से उनको फर्श पर बैठाया । उस आदमी ने जो फारम की शेरै पढ़ पढ़ कर सुना रह था खड़े हो कर अपनी रगीली भाषा में कही, खुदा का शुक्र है कि शारदये चुनार ने इस मजलिस में पहुँच कर हम लोर की इज्जत क्रो फल्केहफ्तुम * तक पहुँचाया । इस जगल बयावान में हम लोग क्या खातिर कर सकते हैं सिवाय इसके कि इनके कदमों को अपनी अखिों पर जगह दें और इत्र व इलायची पेशकश करे !” केवल इतना ही कह कर इत्रदान और इलायची की दिव्यी उनके मागे ले गया । पढे लिखे भले आदमियों की खातिर जरूरी सम कर मानन्दसिंह ने इत्र सा और दो इलायची ले लिया, इसके बाद इनसे इजाजत ले कर वह फिर पारसी कविता पढ़ने लगा ! दूसरे आदमियों ने दो एक तकिए इनके अलग बगल में रख दिए । | इत्र की विचित्र खुशबू ने इनको मस्त कर दिया, इनकी पलकें भारी हो गई थौर बेहोशी ने धीरे धीरे अपना असर जमा कर इनको फर्श पर सुला दिया । दूसरे दिन दोपहर को आँख टलने पर इन्हें ने अपने को

  • मुसलमानों के किताब में गत र आसमान के लिखे हैं, सत्र के ऊपर वाले दर्जे का नाम फल्नेहफ्तुम है ।