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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति एक दूसरे ही मकान में मसहरी पर पड़े हुए पाया। धवडा कर उठ वैट और इधर उधर देखने लगे । | पाच कममिन और खूपसूरत औरतें सामने खड़ी हुई दिखाई दी जिनमें से एक मदारी की तरह पर कुछ आगे बढ़ः हुई थी । उनके हुस्न ग्रौर अदा को देख ग्रानन्दसिंह दग हो गये । उसकी बडी बडी अखि शौर बाझी चितवन ने इन्हें प्रापे से बाहर कर दिया, उसको जरा सी इसी ने इनके दिल पर बिजली गिराई, और आगे बढ़ हाथ जोड़े इस कहने ने ती शोर भो भितम ढाया कि-क्या श्राप मुझसे खफा है ? अनिन्दसिंह भाई ३ जुदाई, रात की बात, ऐयारो के धोखे में पड़ना, सूत्र कुछ बिल्कुल भूल गए और उसकी मुहब्बत में चूर हो बोले"तुम्हारा सी परीजमाल से और रज !! | वह शौरत पल पर बैठ गई और आनन्दसिंह के गले में हाथ डाल के बोली, “बुदा को कमम खा कर कद्दती हूँ कि साल भर से आपके इश्क ने मुझे बेकार कर दिया ! मिवाय अापके ध्यान के स्वाने पीने की विल्कुल सुध न रही, मगर मौका न मिलने से लाचार या !' ग्रानन्द० ! ( चाक कर ) हैं ! क्या तुम मुसलमान हौ जो खुद को कसम खाती है ? ग़ौरत० } ( हम कर ) हा, क्या मुसलमान बुरे होते हैं ? ग्रानन्दसिंह य" कह कर उठ खड़े हुए---*अफमोम | अगर तुम मुसलमान न होता तो में तुम्हें जी जान में प्यार करता, मगर एक अंग्त ३ निए अपना मन नही गाड मफ्ता ??? ग्रीन ! ( हाथ थाम कर ) ३ । वेमुरी उनी मत करी । म मच को 7 प तु हारा जुदाई मुझमे न मह जायेग, ! अन द भ न मचे हना है कि मुझसे किस तरह के उम्मीद न ३ ] । *प्रश्न० । ( भा मिकी केर ) या यह बात दिल से कहते हो ?