पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/३८

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हस्सा | भी पैदा किया शुश्किो भी पैदा किया, जब एक ही बाप के सय लडके हैं। | तो पुस में छूत कैसी ! | आनन्द ० 1( चिढ़ कर ) खुदा ने हाथी भी पैदा किया, गदहा भी पैदा किया, कुत्ता भी पैदा किया, सूअर भी पैदा किया, मुग भी पैदा किया, जत्रे एक ही बाप के सव लटके हैं तो परहेज काहे का ? ग्रोग्त० | खैर खुशी श्रापको, न मानियेगा पछिताइयेगा, अफसोस कजियेगा, और अाखिर झख मार कर फिर वही कजियेगा जो मैं कहती हूँ । भूखे प्यासे जान देना जर मुश्किल बात है--- लो में जाती हूँ ! खाने पीने का सामान और रोशनी वहीं छोड चारो लाडियें उस | सिड़की के अन्दर घुस गई । अनिन्दसिंह ने चाहा कि जब यह शैतान खिडकी के अन्दर जाय तो मैं भी जबर्दस्ती सार्थ हो लू, या तो पार ही हो जाऊगा या इसे भी न जाने दूर, मगर उनका यह ढङ्ग भी न लगा । वह मदमाती श्ररित खिडकी में अन्दर की तरफ पैर लटका कर बैठ | गई र इनसे बात करने लगी । औरत० { अच्छा आप मुझसे शादी न करें इसी तरह मुहब्बत रखें । श्रानन्द | कभी नहीं, चाहे जो हो ।। औरत० } ( रार्थ का इशारा करके ) अच्छा उस औरत से शादी करे गे जो आपके पाछे खी है? वह तो हिन्दुआना है ।।

  • मेरे पाछे दूसरी रत कह{ ४ ग्राई । ताज्जुब से पोछे फिर कर श्रानन्दसिंह ने देखा । उस नालायक को मौका मिला, पिङ्की के अन्दर हो झट कियाड बन्द कर लिया ।।

अनिन्द्रसिंह पूरा धोरता खा गये, हर तरह से हिम्मत टूट गई, लाचार फिर उस पत पर लेट गये ! भूख से शाखे निकली थाती थी, खाने पीने का सामान मौजूद था मगर वह जहर से भी कई दर्जे बढ़ के था, दिल में समझ लिया कि अब जान गई । कभी उठते, कभी चैठते, कभी दालान के बाहर निकल कर टहलते } अध दात जाते जाते भूख की