पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/४

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा | का नाम इन्द्रजीतसिंह, छोटे का नाम अनिन्दसिंह, चपला के लडके का | नाम भैरोसिह, और चम्पा के लक्ष्के को नाम तारासिंह रक्खा गया । जब ये चारो लडके कुछ बड़े श्रौर बातचीत करने लायक हुए तत्र इनके लिखने पढ़ने और तालीम का इन्तजाम किया गया और राजा सुरेन्द्रसिंह ने इन चारो लडको को जीतसिंह को शागिदीं और हिफाजत में छोड़ दिया। । भैरोसिंह और तारासिंह ऐवारी के फन में बड़े ही तेज और चालाक निकले । उनकी ऐयारी का इम्तिहान बराबर लिया जाता था । जैतह का हुक्म था कि भैरोसिंह और तारासिंह बुल ऐयारो को दकि अपने चाप तक को धोखा दे की कोशिश करें और इस तरह पन्नालाल बचे रह ऐयार भी उन दोनों लड़कों को भुलावा दिया करें । धीरे धीरे ये दोनों लडके इतने तेज और चालाक हो गए कि पन्नालाल वरह की ऐयारी इनके सामने व गई । भैरोसिंह ग्रोर तारासिंह इन दोनों में चान्नाक ज्या दे कौन था इसके कहने का कोई जरूरत नहीं, आगे मौका पने पर यापही मालूम हो | जायगा, ह इतना कह देना जरूरी है कि भैभिह को इन्द्रजीतसिंह के । साथ और तारासिंह को आनन्दसिंह के साथ ज्यादे मुहब्ब्त थी । चारो लडके होशियार हुए अर्थात् इन्द्रजीतसिंह भैरसिंह शौर तारा { सिंह की उम्र अट्र ह अटारह वर्ष की श्रौर नन्दसिंह की उम्र पन्द्रह .. वर्ष की हुई ! इतन दिन तक चुनार राज्य में बराबर शान्ति रही बल्कि ", छिनी तकलं फे श्रौर महाराज शिवदत्त की शैतानी एक स्वप्न की तरह सभी के दिल में रह गई ।। इन्द्रज तसिंह को शिकार का शौक बहुत था, जहाँ तक बन पडता वे • रोज शिकार खेला करते ! एक दिन किसी वनरखे ने हाजिर हो कर बयान | किया कि इन दिनो फलाने जंगल की शोभा खूब बढ़ो चढो है और । शिकारी जानवर भी इतने झाए हुए हैं कि अगर वहाँ महीने भर टिक कर