पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/४८

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पहिला हिस्सा
 

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कहती है कि जब तक वीरेन्द्रसिंह के ऐयार न छोड़ दिये जायँगे तुम घर जाने न पाओगे । | वाकर० | यह कैसे मालूम हुआ ? शिवदत्त० । ( चीठी दे कर ) यह देखो खास भीमसेन के हाथ लिखा हुआ है, इसे चीठो पर किसी तरह का शक नहीं हो सकता । किर । ( पढ़ कर ) ठीक है, इतने दिनों तक कुमार का पता लगना ही कहे देता था कि उन्हें किसी ने धोखा दे कर हँसा लिया, यह भी मालूम हो गया कि किसी शौरत में सर्दी के कान काटे हैं। | शिवदत्त । | ताज्जुब है; एक औरत ने बहादुरी से भीम को है गिरफ़ार कर लिया ! तैर इसका खुलासा हाल तभी मालूम होगा । भीम से मुलाकात होगी और जव तक वीरेन्द्रसिंह के ऐयार चुनार । पहुँच जाते भीम को सूरत देखने को तरसते रहेंगे । तुम ना के उन ऐय् को अभी छोड़ दो, मगर यह मत कहना कि तुम लोग फलानी वजह छोड़े जाते हैं बल्कि यह कहना कि हमसे और बीरेन्द्रसिंह से सुलह गई, तुम जल्द सुनार जाश्रो । ऐसा कहने से वे कहीं न रुक कर से चुनार चले जायेंगे ! बाकरअली महाराज शिवदत्त के पास से उठा और वहां पहुँचा । बद्रीनाथ वगैरह ऐयार कैद थे । सभी को कैदखाने से बाहर किया । कहा *अब आप लोगों से हसले कोई दुश्मनी नहीं, अपि लोग अ घर जाई, क्योंकि हमारे महाराज से और राजा वीरेन्द्रसिंह से सुर हो गई । | बद्रीनाथे । बहुत अच्छी बात है, बड़ी खुशी का मौका है, पर आ पिका कहना ठीक है तो हमारे ऐयारी के बटुये श्रौर खञ्जर भी दे दीजिरे बाकर० } हाँ हाँ लीजिए, इसमें क्या उम्र है, यमी मंगाये देता बल्कि में खुद जाकर ले श्रतिी हूँ। दो तीन ऐयारों को साथ ले इन यारों के बटुए वगैरह लेने के हि