पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति शिकार खेला जाय तो भी जानवर न घटें और कोई दिन खाली भी न जाय | यह सुन दोनों भाई बड़े खुश हुए। अपने बाप राजा बीरेन्द्रसिंह ते शिकार पेलने की इजाजत माँगी और कहा कि “हम लोगों का इरादा झाट दस दिन तक जंगल में रद्द कर शिकार खेलने का है । इसके जवाब में राज चोरेन्द्रसिंह ने कहा कि इतने दिनो तक जगल में रह कर शिकार पैलने का हुक्म में नहीं दे सकता, हाँ अपने दादा से पूछोअगर चे हुक्म है तो कोई हर्ज नहीं है। यह सुन इन्द्रजीतसिंह अौर अानन्दसिंह ने अपने दादा महाराज सुरेन्द्र के पास जाकर अपना मतलन अर्ज किया । उन्होंने खुशी से मन्जूर किया और हुक्म दिया कि शिकीरगाह में इन दोनों के लिए खेमा उदा किया जाय और जब तक वे शिकारगाह में रहे पाँच सौ फौज बरावर इनके साथ रहे ! शिफार पेलने का हुक्म पा इन्द्र जीतसिंह शौर श्रीनन्दसिंह बहुत पुग्न हुए श्रीर अपने दोनों ऐयार भैरोसिंह और तारासिंह को साथ ले मय पाँच मी फोन के चुनार से रवाना हुए। नुनार से पाँच कम दक्षि एक घने और भयानक जंगल में पहुँच कर उन्होंने देश ४ाला ! दिन थोटा बाकी रह गया था इसलिए यह राय गरि 'प्राज्ञ श्रीराम करे, कल सवेरे शिकार का बन्दोवस्त किया जायगा, मगर वनरम्प 5 ॐा शेर का पता लगाने के लिए, आज ही कर दिया जाय । जगली की हिफाजत के लिए जो नौकरे रहते हैं उनको बनरखे ने १ । शिर पिलाने का काम देनरी हा का है। ये लोग जगल * पून घूम र श्री शिकारी जानवरों के पैर का निशान दे और उस -गज पर जा जा जर पता लगाते हैं कि शेर इत्यादि कोई चिंकारा जानपर म जान ५१ ना, या प्रगर है तो कहाँ पर है । वनरखो का | ":{" ::रना ना । टप झा व उत्रर कि फलानो हो। ः । नागः या २५ ।।