पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५०

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पहिला हिस्सा
 

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५७ पहिला हिस्सा या बीमार अमीर लोग चढ़ते हैं, बम बिना हाथी के मेरा काम नहीं चलता, सो भी बिना हौदे के चढ़ने की आदत नही, ते ननिह दीवान का लडका विना चॉदी सोने के दूसरे हदे पर बैठ नहीं सकता । चुन्नी | भाई ब्राकर ने मुझे बेढब छकाया है, मैं तो जब तक फिर की शाट भाशे नाक न ले लूगा यहाँ से टलने वाला नही चाहे जान रहे या जाय । चुन्नीलाल की बात सुन कर सभी हँस पड़े अौर देर तक इसी तरह की बातचीत करते रहे, तब तक बाकरअली भी इन सभ के बटुए और खुलर लिए हुए श्री पहुँचा ।। । बाकर० | लो साह ये आप बटुये और खञ्जर हाजिर है । बद्रो० । क्यों यार कुछ चुराया तो नहीं ! और तो खैर, बस मुझे अपनी अशफयों का धोखा है, हम लोगों के बये में खूब मजेदार * चमकती हुई अशर्फिया थी । - चकिर० | अब लगे न झूठ मूठ का बखेडा मचाने ! राम० । ( मुहू चना कर ) है, सच कहना ! इन बातों से तो मालूम होता है अराफैयाँ कर गए। ( पन्नालाल वगैरह की तरफ देख कर ) लो भाइयों नृपनी अपनी चीजे देख लो ! | पन्ना० । देखें क्या है म लोग जब चुनार से चने थे तो सो सके। अशर्फियों से कौ खर्च के लिये मिल थी । ३ १३ व्यों को त्या बटुये के मौजूद था । भैरो० ! माई मेरे पास तो अशयों नहीं था, राँ एक छोटी सी " पुटरी लवाहित की जरूर थीं सो गायव है, अब क्रहिये इतनी व रकम | छोड़ कर कैसे चुनार जाए !! | भद्रो० } अच्छी दिल्लगी है ! दोनों राज में सुलह हो गई और इस खुशी में जुट गए हम लोग ! चलो एक दफे महाराज शिवदत्त से अर्ज करें, अगर सुनेंगे तो जैतहर है नहीं तो इसी जगह अपना अपना गला