पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५१

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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केन्द्रकान्ता सन्तति काट के रह जायेंगे, धन दौलत लुटा के चुनार जाना हमें मजूर नहीं ! बाकरली हैरान कि इन लोई ने अजव ऊधम मचा रखा है, कोई कहता है मेरी अशर्फियाँ गायब हैं, कोई कहता है मेरी जवाहिरात की गठरी गुम हो गई, कोई कहता है इम छुट गये, अब क्या किया जाय ? हम तो इस पिक में है कि जिस तरह हो ये लोग लद चुनार पहुँचे निसमें भीमसेन की जान बचे, मगर ये लोग तो खमीरी अँटे की तरह फैले ही जाते हैं, पैर के दफे इनकी धमकी देनी चाहिये । | वाकर० । देखो, तुम लोग बदमाशी करोगे तो फिर कैद कर लिये जायोगे ।। बद्री० । जी हाँ, मैं भी यहीं सोच रहा हूँ । १० } ठीक है, जरूर कैद कर लिए जायँगे, क्योंकि अपनी जमा माँग रहे हैं, चुपचाप चले जायें तो बेहतर है जिसमें तुम बखूबी रकम पचर जाओ और कोई सुनने न पाचे ! | भैरो० | यह धमकी तो आप अपने घर में खर्च कीजियेगा, भलमनसी इसी में है कि हम लोगों की जमा वाये हाथ से रख दायेि, चौर नहीं तो बलि राजा साह्य के पास, जो कुछ होगा उन्हीं के सामने निपट लेंगे । बाकर० ) अच्छी बात है, चलिये । सब कोई० । चनिए, चलिए । यए ममरों वा झुएई त्रफ़िरअली के साथ साथ महाराज शिवदत्त के पास पहुँचा । याकर" } महाराज देखिये ये लोग झगडा मचाते हैं । भै१० 1 जी हाँ, कोई अपनी जमा माँगे तो कहिये झगडा मचाते हैं। शित | प्या मामला है । भ० } मराज मुझमें सुनिये, जब हमारे सरकार में श्रीर आपसे नुद्द गः र इम लागे छोड दिये गये तो हम लोगों की में न्चार्ज म न जाना चाह्य जो कैद हाते समय ज्स कर ली गई थी ।