पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६१
पहिला हिस्सा
 

________________

६१ पहिला हिस्सा सोचते कि जब चुनार के मालिक थे तव तो कुँअर बरिन्द्रसिंह से जीते। नही ऋत्र में मल्मि क्या कर सगे ।। भीम० | मैं सच कहता हूँ कि उनकी बातें मुझे पसन्द नहीं मगर क्या करू पिता के विरुद्ध होना धर्म नहीं । | भैरो० } ईश्वर करे इसी तरह अापकी धर्म में वुद्धि बनी रहे, अच्छा अब जाइए। भोमसेन ने अपने घर का रास्ता लिया और हमारे चोखे ऐयारों ने चुनार की सटक नापी ।। दसवीं बयान अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुँअर अानन्दसिंह को बेहोश छोड़ आए हैं अथवा जिन खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पंच कर उन्होंने एक औरत को छुरे से हैं लाश काटते देखा था और योगिनी ने पहुँच कर संभों के मेट्रो कर दिया था । थोडी देर के बाद छानन्दसिंह को छोड योगिनी सभी को कुछ सुंधा कर होश में लाई । बेहोश नन्दनिह उठा कर एक किनारे रख दिए गए श्रीर फिर वही काम अर्थात् लटकते हुए आदमी को हुने ३ काट काट कर पूछना कि ‘इन्द्रजीतसिंह के आ मैं जो कुछ जाता है अता' जारी हुन्ना 1 सिपाही ने भी उन ले ग का साथ दिया ! मगर वह श्रादमी भी कितना जिद्दी था ! बदन के टुकड़े टुकड़े हो गये मगर * जय तक होंश मैं रहा यही कहा गया कि हम कुछ नही जानते । शी ने पहले ही से कन्न खोद रखी थी, दम निकल जाने पर वह शादमी उसी में गाड़ दिया गया ।। इस पाम से छुट्टी पर योगिनी ने सिपाही की तरफ देख कर कहा बाहर जङ्गल से लकडी केटि काम चलाने लायक एक छोटी सी टोली बना, उसी पर नन्दसिंह को रख तुम और शी मिल कर