पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५७

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति | मलम होता है योगिनी और अनचरी इसी की ताक में बैठी थी, क्योंकि जैसे ही वह शौरत वहा से चल खड़ी हुई वैसे ही ये दोनो उसे पर लपी शौर जबर्दस्ती गिरफ़ार कर लेना चाहा मगर वह कमसिन औरत इन दोनों को अपनी तरफ आते देख श्रीर इन दोनों के मुकाविले में अपनी जीत न समझ कर लौट पदी श्रौर फुनी के साथ उस दरख्त में से एक पर चढ़ गई जो उस तालाब के चारों तरफ लगे हुये थे । यौगिनी श्रीर बन चरी दोनो उस दख्त के नीचे पहुँची, योगिनी खड़ी रही श्रर वनचरी उसे पकड़ने के लिये ऊपर चढ़ी। | हम ऊपर लिख झाये है कि यह दरख्त इतने पास पासे लगे हुए थे कि सभ की डालिया श्रापुस में गुर्थ गई थीं । वनचरी को पेई पर चढ़ते देख वह जलचरी ऊपर है। ऊपर दूसरे पेट पर कूद गईं । यह देख योगिनी ने उसके आने वाले तीसरे पेई को ना घेरा जिसमें वह बीच ही मैं फसी रह अयि शीर झागे न जाने पावे, मगर यह चालाकी भी न लगी । जब उस औरत ने अपने दोनों बगल वाले पेष्टों को दुश्मनों से घिरा हुआ पाया, पेड़ के नीचे उतर श्राई शीर ताला की सीढ़ियों को ते करके धम्म से काल में कूद पडी 1 योगिनी और अनचरी भी साथ ही पैड से उतरीं शौर उमके पीछे जाकर इन दोनों ने भी अपने को जल में डाल दिया दयारहवां बयान सूर्य भगवान श्रस्त होने के लिये जल्दी कर रहे है । शाम को ठढी वो अपनी मस्तानी चाल दिया है। श्रास्मान साफ है क्योंकि अभी अभी पानी चरम चुका है और पच्छ वा ने रूई के पद्दल की तरह जमे हुये बादलों को तुम तुम कर उदो दिया है । श्रस्त होते हुये सूर्य की लानिमा ने शरमान पर अपना उम्पन्न जमा लिया है शीर निकले हुये इन्स पर जिन्न. ३ उम’ ‘गटार जौहर को अच्छी तरह उभाड रक्खा 41 बार कई रबिग पर जिन पर कुदग्ती भिश्ती अभी घटे भर हुआ