पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/६

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा भैंसा + बाधने की कोई जरूरत नहीं, शेर का शिकार पैदल ही किया जायगा । । दूसरे दिन सवेरे मनरखों ने हाजिर होकर अर्ज किया कि इस जुगल | में शेर तो है मगर रात हो जाने के सबब हम लोग उन्हें अपनी अॉखों से न दे सके, अगर आज का दिन शिकार न खेला जाय तो हम लोग देख कर उनका पता दे सकेंगे ।। | आज के दिन भी शिकार खेलना बन्द किया गया । पहर भर दिन बाकी रहे इन्द्रजीतसिंह और शानन्दसिंह घो पर सवार हो अपने दोनों + खास शेर के शिकार मै भैसा बाँधा जाता है । भैंसा बाँधने के दो कारण हैं । एक तो शिकार को अटकाने के लिए अथात् जब बनरखे आकर खवर दें कि फलाने जगले में शेर है, उस वक्त या कई दिनों तक अगर शिकार खेलने वाले को किसी कारण शिकार खेलने की फुरसत न हुई और शेर को अटकाना चाहा तो भंसा बाँधने का हुक्म दिया जाता है । बनरले भैसा ले जाते हैं और जिस जगह शेर का पता लगता हैं उसके पास ही किसी भयानक और सायेदार जगल या नाले में मजबूत लूटा बाड़ कर भैंसे को वाँध देते हैं । जब शेर भ से की वं पाता है तो वह आता है और भैंसे को खा कर उस जगल में कई दिनों तक मस्त और वैफिक्र पड़ा रहता है । इस वकीब से दो चार भैंसा देकर महेनो श्र को अटका लिया जाता है। शेर को जब तक खाने के लिए मिलता है वह दूसरे जगल में नहीं जाता | शेर का पेट अगर एक दफे खूब भर जाये - तो उसे सात आठ दिनों तक खाने की परवाह नहीं रहता 1 खुले भेसे को शेर जल्दी नहीं मार सकता है। - दूसरे जर मचान बॉध कर शेर का शिकार किया चाहते है या एक जंगल से दूसरे जंगल में अपने सुबीते के लिए उसे ले जाया चाहते हैं तेव ३ भो इसी तरह भैसे वय वव कर हटाते ले जाते है | इसको शिकार लोरा 'भर' भी कहते हैं ।