पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/६१

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पहिला हिस्सा
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पहिला हिस्सा थोड़ी देर तक इस कमरे में सन्नाटा रहा, इसके वादकि सी आने वाले की आहट मालूम हुई । सर्मों की निगाह् सदर दरवाजे की तरफ घूम गई, किशोरी ने भी मुँह फेरा और उसी तरफ देखने लगी । एक नौजवान जड़का सिपाहियाना ठाठ से कमरे में आ पहुचा जिसे देखते ही किशोरी घड़ा कर उठ बैठी और बोली :-- कमला, मैं केव से राह देख रही हू । तेने इतने दिन क्यों लगाये ! पाठक मुमझ गये होंगे कि यह सिपाहियाना ठाठ से आने वाली नौजवान लड़का असल मैं मर्द नहीं है बल्कि कमला के नाम से पुकारे जाने वाली कोई ऐयारा है ।। कमला० । यही सोच के तो मैं चली ग्राई कि तुम घबड़ा रही होगी नहीं तो दो दिन का काम और या ।। किशोरी० [ क्या अभी पूरा हाल मालूम नहीं हुआ ? कमला० । नहीं है। किशोरी० } चुनार में तो हलचल खुवे मची होगी । कमला० । इसका क्या पूछना हैं ! मुझे भी जो कुछ थोडा बहुत राल मिला वह् चुनार ही में । फरि० । अच्छा क्या मालूम हुआ ? मिला० । बूढे सौदागर को सूरत बन जब मैं तुम्हारी तस्वीर जड़ी अंगूठी दे आई उसी समय से उनकी सूरत शक्ल,बातचीत,ौर चालढाल में फर्क पड गरा, दूसरे दिन मेरी ( सौदागर को ) बहुत खोज की गई । कियो० । इसमें कोई शक नहीं कि मेरी आह ने अपना असर क्या ! हा फिर क्या हुआ है। | कला० । उनके दूसरे या तीसरे दिन उन्हें उदाम देर शानन्दसिंह रिती पर वा पिलाने लेगये, साथ में एक वृदा नम्र भी था 1 बहाव । तरफ तेसुद कोस जाने के बाद किनारे के जल से गाने बजाने की म। श्राई, उ फिरत फिनारे लगाई शीर उतर कर देखने गये ।