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चन्द्रकांता सन्तति
 

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६६. चन्द्रकान्ता सन्तति वहाँ तुम्हारी सूरत बन माधवी ने पहले ही से जाल फैला रखा था, यहाँ तक कि उसने अपना मतलव साध लिया और न मालूम किसे ढंग से उन्हें लेकर गायब हो गई । उस बूढ़े नौकर की जुबानी जो उनके साथ गया था मालूम हुआ कि माधवी के साथ कई औरतें भी र्थी जो इन दोनों भाइयों को देखते ही भाग । अानन्दसिंह उन औरतों के पीछे लपके लेकिन वे मुलावा देकर निकल गई और नन्दसिंह ने लौट कर आने पर अपने माई को भी न पाया, तव गंगा किनारे पहुच डोंगी पर बैठे हुए खिदमतगार से सच हाल कही ।। किशोरी० { यह कैसे मालूम हुआ कि माधवी ने मेरी सूरत बन कर धोखा दिया है। कमला० । लौटती समय जब मैं उस जंगल के कुछ इधर निकल आई से अव बिलकुल साफ हो गया है, तो जमीन पर पड़ी हुई एक जडाऊ ककनी नजर आई । उठाकर देखा, मैं उस ककनी को खून पहिचानती थी, कई दफे माधवी के हाथ में देख चुकी थी, बस मुझे पूरा यकीन हो गया कि यह काम इसी का है, आखिर उसके घर पहुँची और उसकी गोलियों की बातचीत से निश्चय कर लिया । किशोरी० । देखो रॉड ने मेरे ही साथ दगाबाजी की ! कमला कैसी कुछ ! किशोरी० } तो इन्द्रजीतसिंहू अवे उसी के घर में होते है। कमली० ! नहीं, ८, वहाँ होते तो क्या में इस तरह खाली लं! श्रावी ? किशोरी० । फिर उन्हें कहाँ रक्या है ? फमला० } इसका पता नहीं लगा, मैने चाहा था कि खोज लगाऊ अगर तुम्हारी तरफ खयाल करके दौड़ी आई ।। किशोरी० ।( ऊँची सॉस लेकर ) हाय, उस शैतान की बच्ची ने * प्यान उनके दिल से निकाल दिया होगा !!