पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/६३

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पहिला हिस्सा
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पहिला हिस्सा इतना कह किशोरी रोने लगी यहाँ तक कि हिचकी बध गई । कमला ने उसे बहुत समझाया और कसम खाकर कहा कि मैं अन्न उसी दिन खाऊँगी जिस दिन इन्द्रजीतसिंह को तुम्हारे पास ला बैठाऊँगी । | पाठक इस बात के जानने की इच्छा रखले होंगे कि यह किशोरी कौन है ? इसका नाम हमे पहिले लिख आये हैं और अब फिर कहे देते हैं। कि यह महाराज शिवदक्ष की लड़की है, मगर यह किसी दूसरे मौके से मालूम होगा कि किशोरी शिवदत्तगढ़ के बाहर क्यों कर दी गई यी वाप का घर छोड़ कर अपने ननिहाल में क्यों दिखाई देती है । थोड़ी देर सन्नाटा रहने वाद फिर किशोरी ऋौर कमला में बातचीत होने लगी : किशोरी० । कमला, तु अकेली क्या कर सकेगो १ | कमला० । मैं तो वह कर सकेंगी जो चपला शौर चम्पा के किये भी न हो सके । किशोरी० | तो क्या अब तू फिर जायगी ? फमला० । हों जरूर जाऊँगी मगर दो एक बात का फैसला आन ही तुमसे कर लूगी नहीं तो पीछे बदनामी देने को तैयार हो जोगी । | किशोरी० । वहिन, ऐसी क्या बात है जो मैं तुझी की बदनामी देने पर उतारू हो जाऊंगी १ एक ते ही तो मेरे दुःख सुख की सायी है। कमला। यह सब सच है मगर श्रापुस का मामला बहुत टेढ़ा होता है। किशोरी० | पैर कुछ फह तो सही है । कमला• । कुमार इन्द्रजीतसिह को तुम बाती हो, इसी सत्रव से उनके कुटुम्ब भर की भलाई तुम अपना धर्म समझनी ही, मगर तुम्हारे दिना में श्रीर उस घराने मे पर चैर बंध रा है, तार नहीं कि तुम्हारी श्री इन्द्रजीतमिद की भलाई करते करते मेरे मात्र से तुम्हारे पिता को तकनी पवे, अगर ऐसा हुआ तो चेक तुम्हें रञ्न होगी । किशोर० | इन बातों को न सोच, मैंने तो उसी दिन अपने घर