पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा भैरो० } हम ऐयारों का तो पेशा ही ऐसा है कि पहले तो उनका साधू ना ही विश्वास न कर सकवै ! । इन्द्र० । अाप लोगों की क्या बात है जिनकी मूछ मेरो ही मुई। तो है, खैर चलिए तो सही । भै३० ३,लए ।। | चारो अामा अागे से घूम कर उन अरबाजी के सामने गए ? शेर र सवार जा रहे थे । इन लोगों को अपने पास अ.ते देख बाबाजी स्क ए ! पहिले तो इन्द्रजीतसिह और श्रानन्दसिह का ६ शेर को देख र अ मगर पिर ललकारने से आगे बढ़ा । थो दूर जाकर दोनों राई घोड़े के ऊपर से उतर पड़े, भैरोसिह और तारासिह में दोनों घो। को पेद से बाँध दिया। इसके बाद पैदल ही चारो अादमी महात्मा के इस पहुँचे ।। | बाबाजी० } { दूर ही से ) यो राजकुमार इन्द्रजंतसिंह और निन्दसिंह, कहो कुशल तो है ? इन्द्र० } ( प्रणाम करके ) आपकी कृपा से सब मंगल है । | बा० । ( भैरोसिंह और तारासिंह की तरफ देख कर ) को भैरो और तार, अच्छे हौ ? दोनो० ( पृथ जोड़ कर ) यापकी दया से । चा० । राजकुमार, मैं खुद तुम लोगों के पास जाने को था क्योंकि मने शेर के शिकार करने के लिए इस जल में डेरा डाला हैं । मैं रिनार जा रहा हूँ, घूमता फिरता इस जगल में भी र पचा | यह ल अच्छी मालूम होता है इसलिए दो तीन दिन तक यहाँ रहने का । चार है, कोई अच्छी जगह देख कर धूनी लगाऊँगा । मैरे साथ सवारी र अमात्र लादने के कई शोर हैं, इसलिए कहता हूँ कि धासे में मेरे सी शेर के मत मारना नहीं तो मुश्किल होग, सैक शेर पच कर हारे लश्कर में हलचल मचा डानेंगे और बहुत की जान जाय ।