पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८०

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३ पहिला हिस्सा फर प्रायः राजगृही में रहीं करता था तो गया से दो मंजिल पर एक बडी मारी मशहूर तीर्थ है । यह दिलचस्प और खुशनुमा पहाडी उसे कुछ ऐसा भायी कि साल में दस महीने इसी जगह रहा करता । एक झालीशनि मकान भी बना लिया | यह खुशनुमा और दिलचस्प जमीन जिसमें कुमार इन्द्रजीतसिंह बेबस पड़े हैं कुदरती तौर पर पहले ही की बनी हुई थी मगर इसमें आने जाने का रास्ता और यह मकान चन्द्रदत्त ही ने बनवाया था। | माधवी के माँ बाप दोनों ही शौकीन थे | माधवी को अच्छी शिक्षा देने का उन लोगों को जरा भी ध्यान न था । वह दिन रात लाई प्यार ही में पला करती थी और एक खूबसूरत श्रीर चचल दाई को गोद में रह कर अच्छी बातें के बदले हाव भाव ही सीखने में खुश रहती थी, इसी सत्र से इसका मिजाज लड़कपन ही से खराब हो रहा था । यच्चों मी तालीम पर यदि उनके माँ बाप ध्यान न दे सके तो मुनासिव है कि उन्हें किसी ज्यादै उम्र वाली और नेकवलन दाई की गोद में दे दे, मगर माधवी के माँ बाप को इसका कुछ भी ख्याल न था और आखिर इसका नतीजा बहुत ही बुरा निकला । | माधवी के समय में इस राज्य में तीन श्रादमी मुखिया थे, बल्कि यों करना चाहिये कि इस राज्य का आनन्द ये ही तीनों ले रहे थे और तीनों दोस्त एकदिले हो रहे थे। इनमें से एक तो टीवनि अग्निदत्त था, दूसरा कुवेरमिह सेनापति, श्रौर तीसरा घर्मसिंह जो शहर की कोतवाली करता था। अब हम अपने किस्से की तरफ झुकने हैं अौर उस तालाब पर पहुचते y हैं जिसमें एक नौजवान श्रीर को पकड़ने के लिये योगिनी शौर वनचरी कूदी थीं । श्राने इस तालाब पर हम अपने कई ऐयारों को देखते हैं जो श्री पुस में बातचीत श्रीर सलाद्द करके कोई भारी श्राफ्त मचाने की ३कत्र जमा रहे हैं। पण्डित बद्रीनाथ भैरोसिंह धौर तारासिंह तालाब के ऊपर पत्थर के चबूतरे पर बैठे यै बातचीत कर रहे हैं :