पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८२

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Cu पहिलो हिस्सा तार० } तो वह चारडाल कोतवाल मेरे बॉटै पहा ! खैर यही सही ।। भै) ० | अच्छा अब यहाँ से चल । में तीनों ऐयार वहाँ से उठे ही थे कि दाहिनी तरफ से छीक की श्रावाज अाई।। बद्र० । धत्त की, क्या ते३ छींकने का कोई दूसरा समय न था ! तारा० । क्या आप छींक से डर गये १ अद्र में छींक से नहीं डरा मगर छींकने वाले से जी खटकता है। भै ० हमारे काम में विघ्न पड़ता दिखाई देता है। बद्री० } इस दुष्ट को पकडना चाहिये, बेशक यह चुपके चुपके इमारी धार्ने सुनता रही है। तारा० । छीक नहीं बदमाशी है ! बद्रीनाथ ने इधर उधर बहुत हुँदा भगर छींकने वाले का पता ने लगा, लाचार तरद हैं। मैं तीनों ऐयार वहा से रवाना हुए । । पहिला हिस्सा समाप्त । १९५६ ई-गुटका चौवीसवी संस्करण-३००० प्रति मुद्रक-पारिजात प्रेस, बनारस ।