पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८५

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्त सन्तति वादले? की यह ऐयारी इस समय न मालूम कितने आदमी देख देख कर खुश होते हैं मगर किशोरी के दिल की धड़कन इसे देख देख कर बढ़ती इ सी है ? कमी ते उसका सर पहाइ सो भारी हो जाता हैं, कभी माधवी श्राधिन ही सूरन ध्यान में आती हैं, कभी बाकरअली शुतुरचेहर को बदमाशी याद आती हैं, कभी हाथ में बन्दूक लिए इर दम जान लेने को तैयार बाप की याद तड्पा देती है। | कमला की गये कई दिन हुए, आज तक वह लौट कर नहीं आई, इस सोच ने किशोरी को और भी दुःखी कर रखा है। धीरे धीरे शाम हो गई, सुन्नियाँ सत्र पस वैठी ही रहीं मगर सिवाय ठंढी ठंढी साँस लेने के किशोरी ने किसी में बातचीत में की और वे सब भी दम न मार सकीं । कुछ रात जाते ते बादल अच्छी तरह से धिर श्राये, अंधी भी चलने ले । किशोरी छत पर से नीचे उतर आई और कमरे के अन्दर भभद्दी पर जा लेटो, थोड़ी ही देर बाद कमरे के सदर वजे का पर्दा इटी और कमला पन असशी सूरत में अाती हुई दिखाई पड़ी है। कमला के न आने से किशोरी उदास हो रही थी, उसे देखते ही पलंग पर से उठी, आगे बढ़ कमला को गले से लगा लिया और गद्दो पर अपने पास ल! बैठाया, कुशल मल पूछने के बाद बातचीत होने लगी | किशोरी० | कहो बहिन, तुमने इतने दिनों में क्या क्या काम किया है उन है मुलाकात भी हुई या नहीं है। कमला० । मुलाकात क्यों न होती है आखिर में गई ही थी । किस लिए । किशोरी | कुछ मेरा हालचाल भी पूछते ३ १ कमज़ा० । नुग्दारे लिए तो जान देने को तैयार हैं, क्या हालचाल । न पृगे ? बस अप दो ही एक दिन में तुमसे मुलाकात हुश्री न्चाती है।