पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८६

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दूसरा हिस्सा | किशोरी० । ( खुश होकर ) हाँ ! तुम्हें मेरी ही कसम, मुझमे झूठ न बोलना । कमल० | क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं तुमसे झूठ बोलँगी ! किशोरी० } नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं समझनी हैं, लेकिन इस ख्याल | से कहती हैं कि कहीं दिल्लगी न सूझो हो । फमल१० 4 ऐसी कभी मत सोचना । किशोरी० । खैर यह कहो माधवी की कैद से उन्हें छुट्टी गिल या नहीं और अगर मिली तो कर १ | कमला० 1 इन्द्रजीतसिंह को माधवी ने उसी पहाड़ी के बीच वाले मकान में रखा था जिसमें पारसाल मुझे थोर तुम्हें दोनों को श्राख में। पट्टी बांध कर ले गई थी । किशोरी० 1 बड़े देदव ठिकाने छिपा रखा ! कमला० | मगर वह भी उनके ऐयार लोग पहुँच ही गये ।। किशोरी० । १ किशोरी को सखिय शौर लोहियों की तरफ देख के ) तुम लोग जो अपना यूपना काम करो किशोरी० } इf अभी कोई काम नहीं है, फिर बुलावेगे तो ग्राना । सपियों और लडियों के चले जाने पर कमला ने देर तक बातचीत करने के बाद कहा माधवी का और अग्निस दीवान का हाल भी चालाकी से इन्द्रजीतसिंह ने जान लिया, अाज फल उनके कई ऐयार वहां पहुंचे हुए है, साय नहीं कि दस पाच दिन में वे लोग राज्य ही को गारत कर लें । दियो । मगर तुम तो कहते हैं कि इन्द्रजीत सिंह वहा से छुट गये है फसला | हां द्रजीतसिंह सो व से छूट गये मगर उनके चारों