पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८७

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति ने अभी तक माधवी का पीछा नहीं छोड़ा, इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का बन्दोबस्त तो उनके ऐयारों ही ने किया था मगर आखिर में मेरे ही हाथ में उन्हें छुट्टी मिली । मैं उन्हें चुनार पहुँचा कर तच यहा आई हूँ श्रीर जो कुछ मेरी जुबानी उन्होंने तुम्हें कइला भेजा है उसे कहना तथा उनकी बात मानन; ही मुनासिब समझती हैं। किशोरी० [ उन्होंने क्या कहा है ? कमला । यी तो वे मेरे सामने बहुत कुछ बक गये मगर असेल मतलब उनका यही है कि तुम चुपचाप चुनार उनके पास बहुत जल्द पहुँच जायो । किशोरी० } ( देर तक सोच कर ) में तो अभी चुनार जाने को तैयार हैं मगर इसमें बडी हँसाई होगी । कमज{० | अगर तुम हैं माई का ख्याल करोगी तो बस हो चुका क्योकि तुम्हारे मा बाप इन्द्रजीतसिंह के पूरे दुश्मन हो रहे हैं । जो तुम चाहती है। उसे वे खुशी से कभी भजूर करेंगे । श्रावि र जब तुम अपने मन की करोगी तभी लेग हे सेंगे, ऐसा ही है तो इन्द्रजीतसिंह का ध्यान दिन से दूर करो या फिर बदनामी कबूल करो ।। किशोरी० । तुम सच कहती हौ, एक न एक दिन बदनामी होनी है है क्योंकि इन्द्रजीतसिंहू कों में किस तरह नहीं भूल सकती | थाखिर तुम्हारी क्या राय है ? | मना० । सपी में तो यही कहूंगी कि अगर तुम इन्द्रजीतसिंह को नहीं भूल सकती हैं उनसे मिलने के लिये इससे बढ़ कर कोई दूसरा मोक तुम्हें न मिलेगा । चुनार में जा कर बैठ रोगी तो कोई भी व्रम्हारा कुयु गिन न सकेग, श्रीज कौन ऐसा है जै महाराज वीरेन्द्रसिंह से मुकाबला करने का माहम पता है ? तुम्हारे पिता अगर ऐसा करते हैं। । यह ना भू है, ग्राज नुरेन्द्रसिंह के ग्रान्टान का सितारा बड़ी