पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/८८

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दूसरा हिस्सा तेजी से प्रारमान पर चमक रहा है और उनसे दुश्मनी का दावा करना अपने को मिट्टी में मिला देना है । किशोर१० | ठीक है मगर मेरे इस तरह चहा चले जाने से इन्द्रजीतसिंह के बड़े लोग का खुश होंगे ? कमला० । नदी नहीं, ऐसा मत सोचो, क्योंकि तुम्हारी अौर इन्द्रजीतसिंह की मुहब्बत का हाल वहाँ किसी से छिपा नहीं है, सभी जानते हैं कि इन्द्रजीतसिंह तुम्हारे बिना जी नहीं सकते, फिर उन लोगों को इन्द्रजीतसिंह को कितनी मुच्यत है यह तुम खुद जानती है, अस्तु ऐसी दशा में चे लोग तुम्हारे जाने से कव नाखुश हो सकते हैं ! दूसरे दुश्मन की लडकी अपने घर में भ्ग्रा जाने से वे लोग अपनी जीत समझते हैं। मुझे महारानी चन्द्रकान्ता ने खुद कहा था कि जिस तरह बने तुम समझा बुझा कर किशोरी को ले शाशो, बल्कि उन्होंने अपनी खास सवारी का रथे और फई लाड़ी गुलाम भी मेरे साथ भेजे है ।। किशोर० {चोककर) या तुम उन लोगों को अपने माथ लाई हौ! कमला० ! जी हो, जव महगिनी चन्द्रकान्ता की इतनी मुद्दच्यते तुम पर देखा तभी तो मैं भी वहा चलने के लिए राय देती हैं । किशोरी० } अगर ऐसा है तो मैं किसी तरह रुक नहीं सकती, अभी तुम्हारे साथ चल चलेंगी, मगर देखो राखी तुम्हें बराबर मेरे साथ रहन। पड़ेगा । मनु० { भला में कभी तुम्हारा साथ छोड़ सकती हैं । किशोरी० ! अच्छा तो या किसी में कुछ कहना सुनना तो है नहीं ? फला० } किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं बल्कि तुम्हारी इन सपियों और लेडि को भी कुछ पता न लगना चाहिये निको मैंने इरी समय यहाँ से हटा दिया है । किशो३० । वह रध कहाँ खड़ा है ?