पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९३

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति शुरू कर दिया है, अगर यही हालत रही तो सुबह होते होते तक जरूर ग्विजखिला करे इस पड़ेगी । लाजिये अब दुसरा ही रस अदला । प्रकृति की न मालूम किस ताकत ने अस्मान की स्याही को धो डाला और उनकी हुकुमत की रात चातले देख उटास तारों को भी बिदा होने का हुक्म सुना दिया । इधर बेचैन तारों को बराहट देख अपने हुस्न और अमाल पर भूली हुई खिलखिला कर हैं सने वाली कलियों को सुबह की ठण्ड इण्डी हवा नै चूर्व ही आड़े हाथों लिया और मारे थपे के उनके उस वनाव को विगाहना शुरू कर दिया जो दो ही घण्टे पहिले प्रकृति की किसी नीटी ने दुरुस्त कर दिया था । मोतियों से ध्यादै श्रावदार श्रोस की वे टी को बिगड़ते और हँसती दृई कलियों का शृङ्गार मिटते देख उनकी तरफदार खुशबू से न रहा गया, झट फर्मों से अलग हो सुई की ठण्डी हवा से उलझ पड़ी अर इधर उदर फेल धूम मचाना शुरू कर दिया | अपनी फरियाद सुनाने के लिये उन नौजवानों के दिमाग में घुस घुभ कर उठाने को फिक्र करने लगी। जो रेत भर जाग जगा कर इस समय खूबसूरत पल गड़ियों पर सुस्त पड़ र थे । जब उन्होंने कुछ न सुना शौर करवट बदसा कर रह गये तो मालियों की जा घेरा । वे झट उठ बैठे शौर कमर कम उस जगह पहुँचे जह! झन श्रर उमंग भरे हवा के झों से कहा सुनी हो रही थी । | कन्चन छोटे हे का यह दिम, कहा कि ऐसे का फैसला करें ! इन फूलों को तोड तो कर देंगेर भरने लगे । चलो छुट्टी हुई, न रहे। ३१३ र २१३ ५१मुरी { स्यः अच्छा झगडा मिटाया है ! इसके बदले १६ ३ बड़े बड़े दररहन पुश हो इवा की मदद से झुक झुक कर मालियों को ग्रम करने लगे जिनका टनिर्यों में एक भी फूल दिवाई नहीं देता था । स्य ६मा ने 'फरे ! उनमें थी ६ या जो दूसरे को मद्दके देते, अपना म् ते ५५भा को भाती है और अपना सा होते देख सभी खुश होते हैं।