पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९६

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरे हिस्से लीजिये उन परीजमल ने भी पलङ्ग का पीछा छोड़ा श्रौर उटते ही शाईने के मुकाबिल हो वैठी जिनके बनाव को चाहने वालों में गत भर में विथोर कर रख दिया था 1 झटपट अपनी सम्जुनी जुल्फों को सुल्फ', माहताब चैदरों को गुन यजन से साफ कर अलचेली चाल से अठग्नेलियाँ करती, चम्पई दुपट्टा सभालती, रविश पर घूमने और फूलों के मुकाबिल में रुक कर पूछने लगt कि 'कहिये आप अच्छे या हम १? जब जवाब न पाया हाथ बढ़ा तो लिया और बालियों में झुमकों की गह रख ऋगे बढ़ी । गुलाब की पटरी तक पहुंची थी कि का न चल पड़ा श्रीर इशारे से फहा, जरी ठहर जाइये, आपके इस तरह लापरवाह जाने से उलझन होती है, और न तौ चार रख ही करते ग्नौर पछते जाइये !" ज्ञाने दीजिये, ये सब घरटी हैं । इमैं तो कुछ उन लोगों की कुलबुलाहट भलं मलूम होती है वो सुग्रह होने के दो घण्टे पहिले हो उट, इथि मुंह धौ, जरूरी काम से छुट्टी 9;, बगल में धोतो डबा, गंगाजी की तरफ लपके जाते हैं और वहा पहुँच स्नान कर भस्म या च दन लr पटरों पर वैट सं. पा करते करते सुबह के सुहावने समय का प्रानन्द पतित पावनी श्री गगाजी की पापनाशिनी तरंगों से ले रहे हैं । इधर गुप्ती में धुरी उलियों ने प्रेशनन्द में मग्न मन-राज की प्राशा में f रिजापति का नाम ले एक दाना पीछे हटाया और उधर तरनतारिन भगवता जाहवी की लहरे तख्तों ही से झू झू कर दस बीस जन्म को पाप हा ले गई । सुगन्धित हवा के झपेटे कहते फिरते हैं---जरा ठहर साहये, “प्रर्मा न उठाइये, अभी भगवान सूर्य देव के दर्शन देर में होंगे, तत्र तक अप कमल के फुनों को खोल खोल इस तरद्द १९ श्री गंगाजी यो चढ़ाइये कि लड़ी टूटने न पाये, फिर देखिये देवता उसे खुदबखुद भानाकार बना देते हैं या नहीं !! ये सब तो सत्पुरुर्षों में काग ३ को यहां भी आनन्द ले रहे हैं और