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चन्द्रकान्ता सन्तति
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च द्रकान्ता सन्तति वहा भी मजा लूटेंगे । श्राप जरा मेरे साथ चल कर उन दो दिलज की सूरत देखिये ज रात भर जागते और इधर उधर दौडते रहे हैं और सुबह के सुहावने समय में एक पहाड की चोटी पर चढ़ चारो तरफ देखते हुए सोच रहे हैं कि किधर जाय क्या करे ? चाहे वे कितने ही बेचैन क्यों न हो मगर पहा से टक्कर खाते हुए सुबह के ठही ही इची के झोक के इपटने श्रीर हिला हिला कर जताने से उन छोटे छोटे जंगली फुनों के पौधों की तरफ नजर डाल ही देते हैं जो दूर तक कतार बाधे मस्ती से झूम रहे हैं, उन किंयारियों की तरफ ताक ही देते है जिनके फून शौस के बोझ से तंग हो टहनिया छो पत्थर के हकों का सहारा ले रहे हैं, उन साव, और शीशम के पत्तों की घनघना हट सुन ही लेते है जो दखिन में आती हुई सुगन्धित इवा को रोक, रहे सहे जहर को चूम, गुनकारी बना, उन तक थाने का हुक्म देते हैं। इन दो श्रादमिर्यों में से एक तो लगभग बीस वर्ष की उम्र का बहादुर सिपाही है जो ढाल तलवार के इलाचे हाथ में तीर कमान लिये बडी मुस्तैदी से पडा है, मगर दूसरे के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते कि वह कौन या केस दर्जे और इजत का आदमी है। इसकी उम्र चाहे पचास से ज्यादा क्यों न हो मगर अभी तक इसके चेहरे पर बल की नाम निशान नहीं है, जवानों की तरह खुपसूरत चेहरा दमक रहा है, चेशकीमती पोशाक Jौर हरबों की तरफ पयाल करने से तो यह कहने यो जी चाहता है कि किसी फोज का सेनापति है, मगर नहीं, उसको श्रावदार श्री गम्भीर चेहर इशार करता है कि यह कोई बहुत ही ॐ दर्जे का है तो कुछ देर से उई एकटक व यु कोण को तरफ देने २६ ।। | माई कर फिरगाँ के साथ ही साथ लाल बर्दी के बेशुमार फीजी यदि उक्त से दरिन । तरफ जाते हुए दिई पड़े जिनमे इस र ११ दोहर जोश में ग्राज श्री भी दमक उठो र यह धीरे से ये ना, “ो इमारी फीज भी श्री पचा !"