यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
चन्द्रगुप्त
१०६
चन्द्रगुप्त—स्वच्छ हृदय भीरु कायरों की-सी वचक शिष्टता नहीं जानता। अनार्य्य! देशद्रोही! आम्भीक! चन्द्रगुप्त रोटियों की लालच से या घृणाजनक लोभ से सिकन्दर के पास नहीं आया है।
सिकन्दर—बन्दी कर लो इसे।
[अम्भिक, फिलिप्स, एनिसाक्रेटीज़ टूट पड़ते हैं; चन्द्रगुप्त असाधारण वीरता से तीनों को घायल करता हुआ निकल जाता है]
सिकन्दर—सिल्यूकस!
सिल्यूकस—सम्राट्!
सिकन्दर—यह क्या?
सिल्यूकस—आप का अविवेक। चन्द्रगुप्त एक वीर युवक हैं, यह आचरण उसकी भावी श्री और पूर्ण मनुष्यता का द्योतक हैं सम्राट्! हमलोग जिस काम से आये हैं, उसे करना चाहिए। फिलिप्स को अन्तःपुर की महिलाओ के साथ वाल्हीक जाने दीजिए।
सिकन्दर―(सोचकर)—अच्छा जाओ!
[प्रस्थान]