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द्वितीय अंक
 

युद्ध-परिषद होगी। अत्यन्त सावधानी से काम करना होगा। मालवों को मिलाने का पूरा प्रयत्न तो हमने कर लिया हैं।

चन्द्र॰—चलिए, मैं अभी आया!

[चाणक्य का प्रस्थान]

माल॰—यह खेल तो बड़ा भयानक होगा मागध!

चन्द्र॰—कुछ चिन्ता नहीं। अभी कल्याणी नहीं आई।

[एक सैनिक का प्रवेश]

चन्द्र॰—क्या है?

सैनिक—सेनापति! मगध-सेना के लिए क्या आज्ञा हैं?

चन्द्र॰—विपाशा और शतद्रु के बीच जहाँ अत्यन्त संकीर्ण भू-भाग है, वहीं अपनी सेना रखो। स्मरण रखना कि विपाशा पार करने पर मगध का साम्राज्य ध्वंस करना यवनों के लिए बड़ा साधारण काम हो जायगा। सिकन्दर की सेना के सामने इतना विराट् प्रदर्शन होना चाहिए कि वह भयभीत हो।

सैनिक—अच्छा, राजकुमारी ने पूछा हैं कि आप कब तक आवेंगे? उनकी इच्छा मालव में ठहरने की नहीं है।

चन्द्र॰—राजकुमारी से मेरा प्रणाम कहना और कह देना कि मैं सेनापति का पुत्र हूँ, युद्ध ही मेरी आजीविका है। क्षुद्रको की सेना का मैं सेनापति होने के लिये आमंत्रित किया गया हूँ। इसलिए मैं यहाँ रहकर भी मगध की अच्छी सेवा कर सकूँगा।

सैनिक—जैसी आज्ञा—(जाता है)

चन्द्र॰—(कुछ सोच कर) सैनिक!

[सैनिक फिर लौट आता है]

सैनिक—क्या आज्ञा हैं?

चन्द्र॰—राजकुमारी से कह देना कि मगध जाने की उत्कट इच्छा होने पर भी वे सेना साथ न ले जायँ।

सैनिक—इसका उत्तर भी लेकर आना होगा?

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