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चन्द्रगुप्त
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सिंह०––कुछ चिन्ता नहीं। दृढ रहो। समस्त मालव-सेना से कह दो कि सिंहरण तुम्हारे साथ मरेगा। ( अलका से ) तुम मालविका को साथ लेकर अन्त पुर की स्त्रियों को भूगर्भ-द्वार से रक्षित स्थान पर ले जाओ। अलका! मालव के ध्वस पर ही आर्यो का यशोमन्दिर ऊँचा खडा हो सकेगा। जाओ!

[ अलका का प्रस्थान। यवन सैनिको का प्रवेश, दूसरी ओर से चन्द्र- गुप्त का प्रवेश और युद्ध। एक यवन सैनिक दौड़ा हुआ आता है। ]

यवन––सेनापति सिल्यूकस! क्षुद्रको की सेना भी पीछे आ गई है! वाह की सेना को उन लोगो ने उलझा रक्खा है।

'चन्द्रगुप्त––यवन सेनापति, मार्ग चाहते हो या युद्ध? मुझे पर कृतज्ञता का बोझ है। तुम्हारा जीवन!

सिल्यू०––( कुछ सोचने लगता है ) हम दोनों के लिए प्रस्तुत है! किन्तु..............

चन्द्र०––शान्ति! मार्ग दो! जाओ सेनापति! सिकन्दर का जीवन बच जाय तो फिर आक्रमण करना।

[ यवन-सेना का प्रस्थान। चन्द्रगुप्त का जय-घोष ]