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तृतीय अंक
 

प्रखर प्रतिभा कूट राजनीति के साथ दिन रात जैसे खिलवाड़ किया करती है।

नवागत—हाँ, आपने और भी कुछ सुना हैं?

राक्षस—क्या?

नवागत—यवनों ने मालवों से सन्धि करने का संदेश भेजा है। सिकन्दर ने उस वीर रमणी अलका को देखने की बड़ी इच्छा प्रकट की है, जिसने दुर्ग में सिकन्दर का प्रतिरोध किया था।

राक्षस—आश्चर्य!

चर—हाँ अमात्य! यह तो मैं कहने ही नहीं पाया था। रावी-तट पर एक विस्तृत शिविरों की रंग-भूमि बनी है, जिसमें अलका का ब्याह होगा। जब से सिकन्दर को यह विदित हुआ है कि अलका तक्षशिला-नरेश आम्भीक की बहन है, तब से उसे एक अच्छा अवसर मिल गया हैं। उसने उक्त शुभ अवसर पर मालवों और यवनों का एक सम्मिलित उत्सव करने की घोषणा कर दी है। आम्भीक के पक्ष से स्वयं निमंत्रित होकर, परिणय-संपादन कराने, दल-बल के साथ सिकन्दर भी आवेगा।

राक्षस—चाणक्य! तु धन्य है! मुझे ईर्ष्या होती है। चलो।

[सब जाते हैं]