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अन्तर में चित्रकूट ( चित्तौर ) का पवित्र दुर्ग बनवाया, जो भारत के स्मारक-चिह्नो मे एक अपूर्व वस्तु है ।

गुप्तवंशियो ने जब अवन्ती मौर्य्य लोगो से ले ली, उसके बाद वीर मौर्य्यो के उद्योग से कई नगरी बसाई गई और कितनी ही उन लोगो ने दूसरे राजाओ से ले ली । अर्बुदगिरि के प्राचीन भूभाग पर उन्ही का अधिकार था । उस समय राजस्थान के सब अच्छे-अच्छे नगर प्राय मौर्य्य-राजगण के अधिकार में थे । विक्रमीय सवत् ७८० तक मौर्य्य की प्रतिष्ठा राजस्थान मे थी और उस अन्तिम प्रतिष्ठा को तो भारतवासी कभी न भूलेगे जो चित्तौरपति मौर्य्य-नरनाथ मान- सिह ने खलीफा वलीद को राजस्थान से विताडित करके प्राप्त की थी।

मानमौर्य्य के बनवाये हुए मानसरोवर में एक शिलालेख है, जिसमे लिखा है कि----“महेश्वर को भोज नाम का पुत्र हुआ था, जो धारा और मालव का अधीश्वर था, उसी से मानमौर्य्य हुए।” इतिहास में ७८४ सवत् मे वाप्पारावल का चित्तौर अधिकार करना लिखा है, तो इसमे सदेह नही रह जाता कि यही मानमौर्य्य बाप्पारावल के द्वारा प्रवञ्चित हुआ ।

महाराज मान प्रसिद्ध बाप्पादित्य के मातुल थे । बाप्पादित्य ने नागेन्द्र से भाग कर मानमौर्य्य के यहाँ आश्रय लिया, उनके यहाँ सामन्त-रूप से रहने लगे । धीरे-धीरे उनका अधिकार सब सामन्तो से बढा, तब सब सामन्त उनसे डाह करने लगे । किन्तु बाप्पादित्य की सहायता से मानमौर्य्य ने यवनों को फिर भी पराजित किया। पर उन्ही वाप्पादित्य की दोधारी तलवार मानमौर्य्य के लिए कालभुजगिनी और मौर्य्य-कुल के लिए तो मानो प्रलय-समुद्र की एक बड़ी लहर हुई। मान बाप्पादित्य के हाथ से मारे गये और राजस्थान में मौर्य्य-कुल का अब कोई राजा न रहा। यह घटना विक्रमीय सवत् ७८४ की है।

कोटा के कण्वाश्रम के शिवमन्दिर में एक शिलालेख संवत् ७९५ का पाया गया है। उससे मालूम होता है कि आठवी शताब्दी